बात उन दिनों की है जब लंका पर चढ़ाई करने के लिए समुद्र पर पुल का निर्माण कार्य चल रहा था। वैसे तो सैकड़ों रामभक्त इस कार्य में लगे थे, परन्तु मुख्य इंजिनियर नल और नील की व्ययस्ता कुछ अधिक ही थी।
श्रीराम वहीं रेत पर बैठे थे। राम की आंखों में आश्चर्य का भाव था। वे समझ नहीं पा रहे थे आखिरकार यह पत्थर पानी में तैरते कैसे है ? पत्थरों का पानी में तैरते हुए जाना और आपस में जुड़ जाना, कौतूहल पैदा कर रहा था। जब आतुरता हद से बढ़ गई तो उन्होंने सबसे आंखें बचाकर एक पत्थर पानी में फेंके। हाय! यह तो गड़ाक की ध्वनि के साथ नीचे डूब गया। उन्हें लगा शायद पत्थर में कोई खड़ाबी रही होगी। अक्सर हम अपनी असफलताओं में दूसरों को जिम्मेदार मानते हैं। फिर क्या था उन्होंने दूसरी, तीसरी, चौथी.... पत्थर फेंकते चलें गए। परिणाम वहीं ढाक के तीन पात।
अब रघुनंदन के पास एक ही चारा था। उन्होंने नल और नील को अपने पास बुलाया। वत्स! आपके पत्थर पानी में तैरते हुए जाते और आपस में जुड़ जाते है। मैंने कई पत्थर फेंके सबके सब डूब गए। क्यो ?
नल और नील ने मुस्कुराते हुए कहा-- हे नाथ हम दोनों पत्थर
पर तारणहार श्री राम का नाम लिखकर पानी में डालते है। जिसका नाम लेने से पापी भी पार लग जाता है फिर यह पत्थर क्या चीज़ है।
२
रामसेतु का काम जोरों से चल रहा था। एक गिलहरी इसे ग़ौर से देख रही थी। उसकी इच्छा हुई मैं भी कुछ सहायता करूं। बेचारी पत्थर उठा नहीं सकती बहुत सोच विचार कर उसने एक तरीका निकाला। वह बालू पर लेट जाती जो बालू उसके पूंछ और शरीर में लग जाते उसे समुद्र में झाड़ कर फिर वापस आकर उसी क्रिया को दुहराती।
किसी ने उसे टोका मूर्ख गिलहरी - तुम्हारे ऐसा करने से पुल तैयार हो जाएगा।
श्रीराम भी बहुत देर से देख रहें थे। उन्होंनेे गिलहरी के पीठ पर प्यार से अपने हाथ फेरते हुए कहा-- आप इस गिलहरी की हिम्मत न तोड़ें। भगवान सदा भाव के भूखे होते हैं। जिसकी जितनी सामर्थ है वह उतना ही करेगा।
सामर्थ्यवान होते हुए भी बहुत लोग भावहीन होते, दूसरों की सहायता नहीं करते।
कहते हैं ऐसा कहते हुए श्रीराम ने गिलहरी की पीठ पर हाथ फेंरी जिससे उसके पीठ पर सदा के लिए लकीर बन गई।
३
रावण ने जब सुना राम पुल का निर्माण कर रहे हैं। पत्थर पर राम का नाम लिखकर पानी में डालते हैं पत्थर पानी में तैरते हुए जाकर जुट जाता है।
कहते है घमंडी को अपने से आगे सब छोटा लगता है। उसने सोचा यह पतला-दुबला जिसे मैं एक हाथ से उठाकर फेंक सकता हूं।जो इतना कमजोर है कि पिता ने घर से निकाल दिया। जिसे ढंग के वस्त्र भी नहीं। इस अर्द्धनग्न इन्सान का नाम लिखकर डालने पर पत्थर तैरते हैं तो मेरी तो सोने की लंका! मैं यहां वलशाली रावण! मेरे डर से तो यह धरती भी कांपती है। मैं अपना नाम लिखकर पत्थर पानी में डालूं तो कमाल ही हो जाए। ऐसा विचार आते ही वह समुद्र किनारे जा पहुंचा। अपने सारे दल-वल को लेकर गया था। अपनी पौरुष जो दिखानी थी उसे।
रावण ने एक पत्थर उठाकर उसपर रावण लिखा और पानी में छोड़ दिया। पत्थर डूबा तो डूबता ही चला गया।
परिणाम वहीं हुआ खुद डूबा अपने सगे-संबंधियों को भी डूबा दिया।
कहते है घमंड जब सोने की लंका वाले रावण का नहीं रहा तो अदना इन्सान का कैसे रहेगा।
सुनने में आता है भगवान का आहार घमंड हीं है।
श्रीराम वहीं रेत पर बैठे थे। राम की आंखों में आश्चर्य का भाव था। वे समझ नहीं पा रहे थे आखिरकार यह पत्थर पानी में तैरते कैसे है ? पत्थरों का पानी में तैरते हुए जाना और आपस में जुड़ जाना, कौतूहल पैदा कर रहा था। जब आतुरता हद से बढ़ गई तो उन्होंने सबसे आंखें बचाकर एक पत्थर पानी में फेंके। हाय! यह तो गड़ाक की ध्वनि के साथ नीचे डूब गया। उन्हें लगा शायद पत्थर में कोई खड़ाबी रही होगी। अक्सर हम अपनी असफलताओं में दूसरों को जिम्मेदार मानते हैं। फिर क्या था उन्होंने दूसरी, तीसरी, चौथी.... पत्थर फेंकते चलें गए। परिणाम वहीं ढाक के तीन पात।
अब रघुनंदन के पास एक ही चारा था। उन्होंने नल और नील को अपने पास बुलाया। वत्स! आपके पत्थर पानी में तैरते हुए जाते और आपस में जुड़ जाते है। मैंने कई पत्थर फेंके सबके सब डूब गए। क्यो ?
नल और नील ने मुस्कुराते हुए कहा-- हे नाथ हम दोनों पत्थर
पर तारणहार श्री राम का नाम लिखकर पानी में डालते है। जिसका नाम लेने से पापी भी पार लग जाता है फिर यह पत्थर क्या चीज़ है।
२
रामसेतु का काम जोरों से चल रहा था। एक गिलहरी इसे ग़ौर से देख रही थी। उसकी इच्छा हुई मैं भी कुछ सहायता करूं। बेचारी पत्थर उठा नहीं सकती बहुत सोच विचार कर उसने एक तरीका निकाला। वह बालू पर लेट जाती जो बालू उसके पूंछ और शरीर में लग जाते उसे समुद्र में झाड़ कर फिर वापस आकर उसी क्रिया को दुहराती।
किसी ने उसे टोका मूर्ख गिलहरी - तुम्हारे ऐसा करने से पुल तैयार हो जाएगा।
श्रीराम भी बहुत देर से देख रहें थे। उन्होंनेे गिलहरी के पीठ पर प्यार से अपने हाथ फेरते हुए कहा-- आप इस गिलहरी की हिम्मत न तोड़ें। भगवान सदा भाव के भूखे होते हैं। जिसकी जितनी सामर्थ है वह उतना ही करेगा।
सामर्थ्यवान होते हुए भी बहुत लोग भावहीन होते, दूसरों की सहायता नहीं करते।
कहते हैं ऐसा कहते हुए श्रीराम ने गिलहरी की पीठ पर हाथ फेंरी जिससे उसके पीठ पर सदा के लिए लकीर बन गई।
३
रावण ने जब सुना राम पुल का निर्माण कर रहे हैं। पत्थर पर राम का नाम लिखकर पानी में डालते हैं पत्थर पानी में तैरते हुए जाकर जुट जाता है।
कहते है घमंडी को अपने से आगे सब छोटा लगता है। उसने सोचा यह पतला-दुबला जिसे मैं एक हाथ से उठाकर फेंक सकता हूं।जो इतना कमजोर है कि पिता ने घर से निकाल दिया। जिसे ढंग के वस्त्र भी नहीं। इस अर्द्धनग्न इन्सान का नाम लिखकर डालने पर पत्थर तैरते हैं तो मेरी तो सोने की लंका! मैं यहां वलशाली रावण! मेरे डर से तो यह धरती भी कांपती है। मैं अपना नाम लिखकर पत्थर पानी में डालूं तो कमाल ही हो जाए। ऐसा विचार आते ही वह समुद्र किनारे जा पहुंचा। अपने सारे दल-वल को लेकर गया था। अपनी पौरुष जो दिखानी थी उसे।
रावण ने एक पत्थर उठाकर उसपर रावण लिखा और पानी में छोड़ दिया। पत्थर डूबा तो डूबता ही चला गया।
परिणाम वहीं हुआ खुद डूबा अपने सगे-संबंधियों को भी डूबा दिया।
कहते है घमंड जब सोने की लंका वाले रावण का नहीं रहा तो अदना इन्सान का कैसे रहेगा।
सुनने में आता है भगवान का आहार घमंड हीं है।
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