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भाभी की चिट्ठी भाग - २

चलिए शुरू करते हैं भाभी की चिट्ठी पूरी करते हैं...
प्रिय प्राणनाथ
           चरण कमलों में सादर प्रणाम
यहां के सब समाचार ठीक है आपका समाचार सुनेला मन बड़ा बेचैन है। हम तो अनपढ़ गंवार है चिट्ठी लिखवाने में बबुनी के आवे के रास्ता देखते हैं। आप तो पढ़-लिख कर समझदार है। आपको समझना चाहिए चिट्ठी पत्री नहीं आने से हमरा पर किया बीतता होगा। हम दिन रात आपके खियाल में रहते हैं। माई बाप के घर छोड़ आपके भरोसे यहां आई हूं। आप हम औरतन के मन को नहीं समझेंगे। जिससे प्रीत करतें हैं मन उसी के मोह में फंसा रहता है। आपके बिना मुझे कुछॊ अच्छा नहीं लगता मन करता है पख रहता तो उड़कर आपके पास पहुंच जाती। जइसे पानी बीन मछली रहती है मैं भी आपके बिना तड़पती रहती हूं। अपने मन के पीड़ा केकरा कहूं।
अम्मा जी के बारे में आप पुछले रही त उनकर वहीं हाल है। हमरा के त फूटली नजर देखें नहीं चाहती है। बात बात पर हमर माई बाप के सरापे के काम है। दिन में चार बार त सुनेके परइए न जानी कोन पाप कईलो जै अईसन बकलोल हमरा कपार में बथाई गेल। अब त उनकर अइसन बात सुनैके आदत भई गईल है। शुरू में बड रोईत रहलू। हम त अपन प्राण त्याग देतहू जै अहाक एतना मोहब्बत नई देखतौ। उत मुनिया (बेटी) के खातिर हम मरियो न सकईछौ ।
बबुनी (ननद) के आवे पर अम्माजी और सनक जाली। बबुनीजी के कोई काम त है नही । नहा धोकर, खा पीकर दिन भर सहेली के यहा घूमना। हमर साड़ी सब गिलटाकर खराब कर देली। ब्लाउज ना अटी त पीन लगाकर पेन्हेली और फाड़ देवेली । ना जानी कब ससुराल जईहे की पीड छूटी।
गईया बछड़ा देहली ह । दूधो बढ़िया देली। दूधवा देखीला तक मनवा मे राउर खातिर हूक उठेला। इहमा कोई पूछेवाला नईखे आउर उहा रउरा खरीद कर चाय पीली।अच्छा घीउ निकालकर रख तानि अबकी आईब त लेजाईब।अब रउआ एगो बेटी बा दू पईसा बचाए के चाही। शादी-विवाह मे केकरा आगे हाथ पसारे जाएब।
बाबुजी के खांसी ठीक न भेलईन हुए एक डिब्बा च्यवनप्राश ले ले अबईन। आगे अम्माजी ला एगो शाल लेले आएब काहेकि त उनकर शाल पिछले साल चूहा काट देते रहई। बबुनीजी के स्वेटर के फरमाईश है। न आवे पर सब हमरे दोष देथीन। मुनिया लागी एको नीमन चटकदार फ्राक ले आयब , सब गिलटार हो गेल हई। कही बाहर जायसे सब कहैछै जेल बाप कलकत्ता मे नोकरी करईछई आ छउरी कईसन भीखमंगी जईसन कपड़ा पेन्हले हई।
नोट-- भाभी की कहानी समाप्त ही नही हो रही थी, मेरा धर्य टूटने लगा था। लिखने के बाद पढ़कर सुनानी भी दी, फिर उनके इन्सट्रकसन पर सुधार या जोड़ घटाव भी करने थे। मुझे उनके माता पिता पर गुस्सा आ रहा था जिन्होने इन्हे पढ़ाई नही। खैर मै अपने काम पर लगती हू।
मै सोच ही रही थी इन्होने अपने लिए कुछ लाने को नही कहा।  भाभी की आवाज आई- आगे लिख दिअउ पईसा बचे तब हमरो लाख एगो नीमन साड़ी ले आयब । मन तक अभी न  भरल ह लेकिन अब चिट्ठी खतम करईछौ । कम लिखली ह अधिक समझव । लौटती डाक से जबाब देहव ।
                                  राउर चरणो की दासी
                                        सुमित्रा

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