कहते है जब इश्वर ने विभिन्न प्रकार के जीव-जंतु, पशु-पंक्षी के साथ मानव का भी निर्माण कर लिया तो उनके सामने आयु के निर्धारण की बात आई। बहुत सोच-समझकर उन्होने तीस वर्ष की आयु का ऐलान किया।
उनके ऐलान को सुनकर सभी उदास हो गए। सभी ने अपनी नाराजगी जताई। इतनी कठिन जिन्दगी और इतनी लम्बी ? सबकी खुशी को देखते हुए उनकी आयु की अवधि कम कर दी गई।
अब विधाता की नज़र मानव पर गई। विधाता ने पूछा- हे मानव आप मेरी सबसे उत्तम रचना है, मुझे ऐसा लगता वत्स तुम खुश नही हो। तुम्हे जो चाहिए बोलो झिझको नही।
मानव ने अपनी बात रखी।
प्रभु- आपने आयु की सीमा बहुत कम रखी है। तीस वर्ष होते भी कितना है। बचपन के जाते और जवानी के आते ही बीत जाएगे। इतने कम समय मे जीवन को समझने मे लग जाएगा फिर जीऊगा क्या ? जीवन का आनंद भी नही ले पाऊगा।
अभी तक सभी ने अपनी उम्र कम करवाई थी। विधाता भौजक होकर अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना को देखे जा रहे थे। मानव की ओर देखकर पूछा- तो क्या तुम्हे तीस वर्ष की आयु कम लगती है। मै ऐसा करता हू सबने अपनी उम्र कम करवाई है तुममे जोड़ देता हू। गन्धर्व के18श्वान के12 वानर के20 और तुम्हारे 30 सबको जोड़कर 80 होते है। कहो वत्स अब खुश हो। मानव ने सहमति मे अपनी सर हिलाया और अपनी बढी आयु पाकर प्रश्नचित इस धरती पर आ गया।
मानव के जाते ही विधाता उदास हो गए। उनके पुत्र से उनकी उदासी नही देखी गई तो पूछ लियाकत बात है आप चिन्तित दिख रहे है।
विधाता ने कहा- वत्स मानव की रचना से मै बहुत खुश था। आज मुझे आपार कष्ट हो रहा है। यह इन्सान तीस साल अपनी जिंदगी खुशी से गुजरेगा फिर अगला अठारह साल पशु के जैसा बोझ ढोकर गुजारेगा। उसके बाद 48 से 60 तक वह अपनी कमाई की रक्षा करने के लिए भौकता हुआ गुजारेगा कुत्ते सी जिन्दगी गुजारेगा। साठ साल के बाद उसकी जिन्दगी मे न आखो मे रोशनी होगी,न मुह मे दातुन, झूरियो वाला चेहरा देखकर खुद से ही दर्पण देखना छोड़ देगा। अपने बेटे-बहु, पोते-पोती सबको खुश रखने की कोशिश मे बन्दर के जैसा उछलता हुआ बिताएगा। पिचके गाल, सफेद बाल, मासरहित कृष्ण काय शरीर, दूसरो के सहारे चलने वाला प्राणी बनकर सबके लिए बोझ बनकर जिएगा।
दुख इसी बात का है इसने मानव जाति के लिए जो मागा वह वरदान नही अभिशाप बन जाएगा।
उनके ऐलान को सुनकर सभी उदास हो गए। सभी ने अपनी नाराजगी जताई। इतनी कठिन जिन्दगी और इतनी लम्बी ? सबकी खुशी को देखते हुए उनकी आयु की अवधि कम कर दी गई।
अब विधाता की नज़र मानव पर गई। विधाता ने पूछा- हे मानव आप मेरी सबसे उत्तम रचना है, मुझे ऐसा लगता वत्स तुम खुश नही हो। तुम्हे जो चाहिए बोलो झिझको नही।
मानव ने अपनी बात रखी।
प्रभु- आपने आयु की सीमा बहुत कम रखी है। तीस वर्ष होते भी कितना है। बचपन के जाते और जवानी के आते ही बीत जाएगे। इतने कम समय मे जीवन को समझने मे लग जाएगा फिर जीऊगा क्या ? जीवन का आनंद भी नही ले पाऊगा।
अभी तक सभी ने अपनी उम्र कम करवाई थी। विधाता भौजक होकर अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना को देखे जा रहे थे। मानव की ओर देखकर पूछा- तो क्या तुम्हे तीस वर्ष की आयु कम लगती है। मै ऐसा करता हू सबने अपनी उम्र कम करवाई है तुममे जोड़ देता हू। गन्धर्व के18श्वान के12 वानर के20 और तुम्हारे 30 सबको जोड़कर 80 होते है। कहो वत्स अब खुश हो। मानव ने सहमति मे अपनी सर हिलाया और अपनी बढी आयु पाकर प्रश्नचित इस धरती पर आ गया।
मानव के जाते ही विधाता उदास हो गए। उनके पुत्र से उनकी उदासी नही देखी गई तो पूछ लियाकत बात है आप चिन्तित दिख रहे है।
विधाता ने कहा- वत्स मानव की रचना से मै बहुत खुश था। आज मुझे आपार कष्ट हो रहा है। यह इन्सान तीस साल अपनी जिंदगी खुशी से गुजरेगा फिर अगला अठारह साल पशु के जैसा बोझ ढोकर गुजारेगा। उसके बाद 48 से 60 तक वह अपनी कमाई की रक्षा करने के लिए भौकता हुआ गुजारेगा कुत्ते सी जिन्दगी गुजारेगा। साठ साल के बाद उसकी जिन्दगी मे न आखो मे रोशनी होगी,न मुह मे दातुन, झूरियो वाला चेहरा देखकर खुद से ही दर्पण देखना छोड़ देगा। अपने बेटे-बहु, पोते-पोती सबको खुश रखने की कोशिश मे बन्दर के जैसा उछलता हुआ बिताएगा। पिचके गाल, सफेद बाल, मासरहित कृष्ण काय शरीर, दूसरो के सहारे चलने वाला प्राणी बनकर सबके लिए बोझ बनकर जिएगा।
दुख इसी बात का है इसने मानव जाति के लिए जो मागा वह वरदान नही अभिशाप बन जाएगा।
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