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ससुराल की पहली होली

ससुराल की पहली होली यादगार बनकर रह गई।
गांव में सुबह की होली यानि मिट्टी और गोबर का घोलकर बनाया गया, बेहतरीन फर्टीलाईजर। पौधों का भोजन इन्सान पर बुरा न मानो होली है कहते हुए, कीचड़ स्नान। मुझे अच्छी तरह समझा दिया मुझे क्या करनी है।
जैसे ही होली खेलने वालों की झूंड आंगन में पहुंची मुझे घूंघट निकाल कर आंगन में बैठा दिया गया। मुझे घूंघट हटाने, बोलने के साथ, अपनी ओर से किसी को होली में कुछ लगाने की मनाही थी।
मैं चुपचाप बैठी रही सब आते मेरे उपर रंग, कीचड़ गोबर डालते हंसी-मजाक करते हुए चले जाते। मेरा दम घूंट रहा था, परन्तु कर कुछ नहीं सकती ?
सबके जाने के बाद स्नान तो किया फिर भी शरीर से गोबर की गंध आ रही थी। मैं मन ही मन सासु मां को धन्यवाद कर रही थी जो सबेरे जिद्द कर भरपेट पूआ खिला दी थी वरना अब खाना तो दूर पानी पीने की भी इच्छा नहीं हो रही थी। गंध से मितली सी आ रही थी। पाउडर से अपने को ढंक लिया परन्तु सब बेकार। अब गोबर और पाउडर ने मिलकर एक अलग ही बदबू फैला रखी थी। मेरा रोने का मन हो रहा था।
तीन बजे के करीब दरबाजे पर ढ़ोल झाल लेकर गाना गाते हुए होली की टोली आ गई। मेरी उदासी थोड़ी दूर हुई। झूमते-गाते लोगों को पहली बार होली गाते सुन रही थी। 
शहरी जीवन में यह सब देखने को कहां मिलते हैं।
इतने में मेरी ननद ने आकर खबर सुनाई - भाभी सब अबीर खेलने आ गए हैं। अभी सब बाहर गाने सुनने में लगे हैं। होली गाने वालों को टोली जाते सब आपसे होली खेलने आ जाएंगे। 
आप फिर सबेरे जैसे बैठी थी, बैठ जाएं।
मैने थोड़ी सी नाराजगी जताई। आप कह दे मेरी तबियत ठीक नहीं।
ननद जी ने मुझे समझाने के लहजे में कहा- भाभी ऐसा कहने से मां की बदनामी होगी। सब कहेंगे मां ने अपने बहु से होली खेलने से मना कर दिया।
अब मेरे सामने अब फिर से चुपचाप बैठने के सिवा कोई चारा नहीं था। मैं सासू मां की बदनामी कभी नहीं चाहूगी ( बहुत सीधी सादी महिला थी बहुत प्यार करती थी मुझे, शायद मेरी मां से भी ज्यादा, मैं बता दूं मेरी मां गुस्से में रहती थी,प्यार जरा कम)
हां अबकी बार लोगों ने घूंघट में हाथ डालकर मुठ्ठी भर-भर कर अबीर मेरे चेहरे और बालों में डाले। मैं मूरत बनी रही, कुछ अबीर मेरे आंखों में भी चलें गए मैं उठकर खड़ी हो गई। ननद जी वही खड़ी थी उनको इशारों में बताया। फिर क्या था सब अपने अपने सलाह देने शुरू किए। आंखों को पानी के छीटें मारने, गुलाब जल डालने की प्रक्रिया शुरू हुई।
ऐसी यादगार बन गई मेरी होली।
अब कहां रही वह कीचड़ वाली होली। अब तो हम फ़ेसबुक और व्हाट एप पर ही होली खेल लिया करते हैं।

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