हमारे शहर का रिवाज है होली में सब एक-दूसरे के घर जाते रंग अबीर एक दूसरे को लगाते और जम कर पूआ दही वड़ा खाते।
खुदा का शुक्र है यह रंगों भरा त्योहार अभी भी सलामत है। आज के भागदौड़ की जिंदगी में एक सामाजिक पर्व जिसे अपने घर से बाहर आकर मनाया जाता है। आप चाह कर भी इस त्योहार को अपने घर में कैद नहीं कर सकते। होली के दिन सभी एक रंग में यानि चितकबरे रंग में दिखते। होली काले गोरे का फर्क मिटा देती है।
इस बार होली में मेरी छोटी बहन मेरे पास आई। छोटे शहरों में रहनेवालों की खासियत होती है इन्हें रिश्ता निभाना आता है। मेरी बहन अपने पति के साथ मेरे घर आई है, यह बात कानों कान सबको खबर हो गई।
मैने भी सोचा इस बार हम तो कहीं जा नहीं पाएंगे, क्यूंकि चार पहिया वाहन है नहीं। इस बार जिनको पता है हमलोग नहीं आ सकते वो जरूर आएंगे।
इस बार होली में मेरी छोटी बहन मेरे पास आई। छोटे शहरों में रहनेवालों की खासियत होती है इन्हें रिश्ता निभाना आता है। मेरी बहन अपने पति के साथ मेरे घर आई है, यह बात कानों कान सबको खबर हो गई।
मैने भी सोचा इस बार हम तो कहीं जा नहीं पाएंगे, क्यूंकि चार पहिया वाहन है नहीं। इस बार जिनको पता है हमलोग नहीं आ सकते वो जरूर आएंगे।
लोगों के संख्या का अनुमान कर पुए, पूरी, दही वड़ा दूगनें बना लिए गए। रंग गुलाल की खरीदारी भी अधिक किए गए। ऐसे भी पहले अकेले बनाने पड़ते थे, इस बार तो हम दो बहनों ने गप्प करते करते सारा पकवान बना लिया।
शाम से लोगों का आना शुरू हुआ। कभी कभी तो एक साथ तीन परिवार पहुंच गए। शाम से रात के ग्यारह बजे तक लोगों का आना जारी रहा।
खाने की सामग्री तो कम नहीं हुई क्योंकि लोगों को इतनी जगह जानी होती कि कोई अधिक खा नहीं पाता।
शाम से लोगों का आना शुरू हुआ। कभी कभी तो एक साथ तीन परिवार पहुंच गए। शाम से रात के ग्यारह बजे तक लोगों का आना जारी रहा।
खाने की सामग्री तो कम नहीं हुई क्योंकि लोगों को इतनी जगह जानी होती कि कोई अधिक खा नहीं पाता।
समस्या खड़ी हो गई गुलाल की, जो अब समाप्त होने पर आ गया। हम लोगों ने अब मुट्ठी से चुटकी वाली होली खेलनी शुरू कर दिया। फिर भी गुलाल की झोली खाली हो गई। हमें चिन्तित होना लाजिमी था, अभी दुकान तो बंद थे। अभी भी लोगों का आना जारी था।
हमें परेशानी में देखकर दामाद जी (छोटी बहन के पति) ने कहा- चंचला जी (वो मुझे इसी नाम से पुकारते) किवार बंद करिए मैं अबीर का इंतजाम करता हूं।
मेरी बहन से झाड़ू लगाकर सारे गुलाल इकट्ठा करवाएं, फिर आटा की छलनी से उसे साफ किया गया।
अब हम सभी बहुत खुश थे हमारे पास हर रंग की मिली-जुली कम से कम एक किलो अबीर थी। हां, मुट्ठी में हम अबीर ऐसे पकड़ते थे जिससे जिसे लगाने है वो देख न सके।
हमें परेशानी में देखकर दामाद जी (छोटी बहन के पति) ने कहा- चंचला जी (वो मुझे इसी नाम से पुकारते) किवार बंद करिए मैं अबीर का इंतजाम करता हूं।
मेरी बहन से झाड़ू लगाकर सारे गुलाल इकट्ठा करवाएं, फिर आटा की छलनी से उसे साफ किया गया।
अब हम सभी बहुत खुश थे हमारे पास हर रंग की मिली-जुली कम से कम एक किलो अबीर थी। हां, मुट्ठी में हम अबीर ऐसे पकड़ते थे जिससे जिसे लगाने है वो देख न सके।
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