एक साल बाद आनेवाली होली का इंतजार बच्चे बूढ़े जवान सबको रहता है। रंगो का यह पर्व उंच नीच, छोटा-बड़ा,अमीर-गरीब का फासला मिटाते हुए सबको एक रंग मे रंग डालता है। होली सुन्दरता कुरूपता मे भी कहां कोई अंतर रहने देती।
आज फिर होली रंगो की झोली लेकर आ गई। सबेरे के लगे रंगो को हटाते हुए दोपहर का समय आ गया।
आज फिर होली रंगो की झोली लेकर आ गई। सबेरे के लगे रंगो को हटाते हुए दोपहर का समय आ गया।
हमलोग खाना खाकर थोड़ी आराम कर फिर से शाम की तैयारी मे लग गए ।
सबेरे तो सभी अपने पुराने वस्त्र पहनते है, लेकिन शाम की होली नई ड्रेस मे खेली जाती है।
चाय पीते समय किनके -किनके घर जानी है। कितने बजे तक वापस लौट आने है, ताकि जो मेरे घर आए उन्हें लौटना ना हो इन बातों की बहस होती रही।
अबीर-गुलाल के साथ हम चार बजे घर से निकल कर जिनके घर गए , वहा पहले से दो जोड़े यानि पति-पत्नी मौंज़ूद थे। वहा का माहौल होलीनुमा पहले से ही था। पहले अबीर का, फिर पुआ दही बड़े का दौर चला।
अब मेजबान ने आठ ग्लास मे मिल्क शेक जैसी कोई चीज पेश की। यह क्या है ? एक साथ कई आवाज आई । अरे कुछ नही इसे शर्बत ही समझे दूध मे थोड़ी सी भांग मिली हुई है।
जितने भी पुरुष थे उनके चेहरे से खुशी साफ झलक रही थी, लेकिन महिलाओ ने साफ इंकार कर दिया।
मेजबान के आग्रह और पुरुष पार्टी के दबाव मे आकर सभी महिलाओ ने आधी ग्लास ली।
औरों का पता नही परन्तु मेरी जो हालत थी, मुझे अच्छी तरह याद है। घर आने पर मेहमान का आना शुरू हो गया।
सबेरे तो सभी अपने पुराने वस्त्र पहनते है, लेकिन शाम की होली नई ड्रेस मे खेली जाती है।
चाय पीते समय किनके -किनके घर जानी है। कितने बजे तक वापस लौट आने है, ताकि जो मेरे घर आए उन्हें लौटना ना हो इन बातों की बहस होती रही।
अबीर-गुलाल के साथ हम चार बजे घर से निकल कर जिनके घर गए , वहा पहले से दो जोड़े यानि पति-पत्नी मौंज़ूद थे। वहा का माहौल होलीनुमा पहले से ही था। पहले अबीर का, फिर पुआ दही बड़े का दौर चला।
अब मेजबान ने आठ ग्लास मे मिल्क शेक जैसी कोई चीज पेश की। यह क्या है ? एक साथ कई आवाज आई । अरे कुछ नही इसे शर्बत ही समझे दूध मे थोड़ी सी भांग मिली हुई है।
जितने भी पुरुष थे उनके चेहरे से खुशी साफ झलक रही थी, लेकिन महिलाओ ने साफ इंकार कर दिया।
मेजबान के आग्रह और पुरुष पार्टी के दबाव मे आकर सभी महिलाओ ने आधी ग्लास ली।
औरों का पता नही परन्तु मेरी जो हालत थी, मुझे अच्छी तरह याद है। घर आने पर मेहमान का आना शुरू हो गया।
मेरे पैर लड़खड़ा रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे मेरे पैर मेरे वश मे नही। मै अपने-आप को बहुत संभालने की कोशिश कर रही थी। पर सब व्यर्थ। मेहमान को कुछ खाने को देना तो दूर पतिदेव लेकर आते तो मै पूछ बैठती- क्या ऐ भूखे है इनके घर मे कुछ नही बना है।
आगंतुक भांप जाते थे, लगता है भाभीजी के साथ कुछ गड़बड़ है। मुस्कराते हुए उनका जबाब आता- नही भाभी जी घर मे कुछ बनी नही।
इसपर मेरी हंसी ठहाके मे बदल जाती। एकबार हंसी क्या आई अब रोकना चाहकर भी नहीं रोक पा रही और मैने अकारण हंसना शुरू कर दिया।
ऐसा नही था कि मुझे पता नही चलता था बीच- बीच मे जैसे कोई नींद से जागता है। मुझे होश के झटके आते मै व्यक्त करती लगता है मुझे भांग लग गई है। अब मै ठीक कैसे हो पाऊंगी यह चिंता भी होती, परन्तु दूसरे क्षण फिर वही ठहाके लगाना।
ऐसा नही था कि मुझे पता नही चलता था बीच- बीच मे जैसे कोई नींद से जागता है। मुझे होश के झटके आते मै व्यक्त करती लगता है मुझे भांग लग गई है। अब मै ठीक कैसे हो पाऊंगी यह चिंता भी होती, परन्तु दूसरे क्षण फिर वही ठहाके लगाना।
इतने में किसी ने कहा कैलाश जी के यहां होली बंद हैं, उनकी माता जी गुजर गई है। हंसी के बीच भी मुझे यह आभास हुआ यह तो दुखी होने वाली खबर है। फिर क्या था मैंने रोना शुरू कर दिया। अब तो भारी मुसीबत सब लगे समझाने आप दुखी न हो उनका उम्र अस्सी से ज्यादा हो चला था। भगवान ने अच्छा किया चलते फिरते चली गई। मुझे भी लग रहा था इतना रोने का काम नहीं लेकिन मैं चाहकर भी रोना छोड़ नहीं पा रही थी।
धीरे-धीरे शाम से रात हो चली मेरे में कोई सुधार नहीं, कभी रोना तो कभी ठहाके लगाना। अब लोगों का आना भी रुक गया था।
पतिदेव ने कहा- अब कोई नहीं आने वाला हम लोग सोने चले। मैं सोने के कमरे में पहुंची तो लगा ड्राइंग रुम का दरवाजा खुला रह गया।
धीरे-धीरे शाम से रात हो चली मेरे में कोई सुधार नहीं, कभी रोना तो कभी ठहाके लगाना। अब लोगों का आना भी रुक गया था।
पतिदेव ने कहा- अब कोई नहीं आने वाला हम लोग सोने चले। मैं सोने के कमरे में पहुंची तो लगा ड्राइंग रुम का दरवाजा खुला रह गया।
पतिदेव के लाख समझाने पर भी मुझे नहीं मानना था नहीं मानी। जाकर देखा तो दरवाजा बंद मिला। हम वापस बेड रूम में पहुंचे ही थे कि फिर वही जिद्द नहीं हमने ठीक से देखा नहीं चलकर फिर से देखें। यह एक सिलसिला बन कर रह गया। बंद दरवाजे को देखकर झटका लगता। थोड़ी देर बाद फिर से वही दरवाजा खुला होने की जिद्द।
बीच-बीच में मैं महसूस करती यह सब उस भांग के कारण हो रहा है। मैं डर भी रही थी कहीं मैं हमेशा के लिए ऐसे तो नहीं रह जाऊगी। मैंने भगवान से प्रार्थना भी की - हे भगवान अबकी बार मुझे ठीक कर दो फिर जिंदगी में कभी ऐसी गलती नहीं करूंगी।
इसी रोने हंसने और किवार चेक करते करते मेरी नींद आ गई।
सुबह आंख खुली तो अपने आप को अपने ही वश में पाकर अपार खुशी हुई।
इसी रोने हंसने और किवार चेक करते करते मेरी नींद आ गई।
सुबह आंख खुली तो अपने आप को अपने ही वश में पाकर अपार खुशी हुई।
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