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तिष्यरक्षिता भाग - 3

महारानी क्या मैं आ अंदर आ सकता हूं ?
 रक्षिता ने मुस्कराते हुए कहा - आपको आज्ञा लेने की जरूरत नही, आप जब चाहे आपको आने की अनुमति है।
जी महारानी ने क्यो इस नाचीज को याद किया ? मेरे लायक कोई सेवा हो तो फरमाए।
कुणाल आपकी उपस्थिति ही हमारी सबसे बड़ी सेवा है। आपको देखकर देखते रहना मेरी सबसे बड़ी खुशी है।आपकी आंखो मे मै अपनी सूरत देखती रहूं यही कामना है मेरी।
मैने जब आपको पहली बार देखा उस पहली दीदार मे ही मैने अपना दिल हार दिया। मुझे आपसे बेइंतहा मुहब्बत है। 
मै अपनी मुहब्बत का इजहार करती हूं। आप मेरे प्यार को स्वीकार करे।
महारानी यह कैसी बच्चो जैसी बात कर रही है आप ?
आप जानती है आप कौन है ? हमारे बीच क्या रिश्ते है।
रक्षिता ने बीच मे ही बात काटते हुए जबाब दिया- नही जानती ना ही जानना चाहती। मै बस एक रिश्ते को जानती मुझे आपसे प्यार है और आपकी प्रेमिका हूं मै। 
मैने सुन रखा है - मुहब्बत और जंग मे सबकुछ जायज है।आप अगर मेरे प्रणय निवेदन को ठुकरा दिए तो मै विष खाकर जान दे दूंगी। मै आपके वगैर नही जी सकती। आप मेरे प्यार को स्वीकार करे कुणाल । मुझे आपसे, आपकी खूबसूरत आंखो से बेइंतहा मुहब्बत है।
कुणाल सकपकाते हुए, सर झुकाए ही रहा। थोड़ी देर के लिए सन्नाटा साथ छाया रहा। ऐसा लग रहा जैसे कुणाल कुछ कहना चाह रहे, लेकिन जुबान साथ नही दे पा रही।
तिष्यरक्षिता ने ही मौन तोड़कर कहा - आपकी चुप्पी बता रही है- आपने मेरे प्रेम निवेदन की हामी भर दी। मै बता नही सकती मै कितना खुश हूं। मेरी जन्म भर की तपस्या सफल हो गई । मै आज भगवान को घी के लड्डू चढ़ाऊंगी। तिष्यरक्षिता इतनी खुश थी कि उसे कुणाल की नजरो मे प्यार ही प्यार दिखाई दे रहा है। जब खुश हो तो सभी ओर खुशी ही दिखाई देती है और अपना दिल गम मे हो तब सारी दुनिया गमगीन दिखाई देती है। तिष्यरक्षिता के आंखो पर चढ़ा मुहब्बत का चश्मा उसे कुणाल की आखो मे प्यार-मोहब्बत ही देख रही थी।

उसे शायद सूर्पनखा की याद नही आई - इतिहास गवाह है जब भी प्रणय निवेदन किसी नारी ने किया है - उसे जिल्लत झेलनी पड़ी है। अपनी जीत की खुशी मे उलझी तिष्यरक्षिता देख नही पा रही थी- आज फिर से इतिहास दुहराई जाने वाली है। क्रमश ....
Tisyrakshita/Kunal

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