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ना सुनने की आदत

एक ऐसी आदत जो हमें अपने में और अपनो में डालनी चाहिए। न सुनना वैसे किसी को भी अच्छा नहीं लगता। हम जो कहें लोग हां कर दें अच्छा लगता, लेकिन यह हर समय हो नहीं सकता। हमें ना सुनने की आदत अपने में डालनी होगी ,वरना जिंदगी जीना मुहाल हो जाएगा।  सवाल यह है कि हम अपने जिंदगी में ना सुनने की आदत कैसे डालें?

 यह आदत बचपन से ही बच्चों में माता-पिता के द्वारा डाला जाना चाहिए। होता यह है हम प्यार में बच्चों को उनकी जो भी चीज पसंद की होती है तुरंत लाकर दे देते हैं। उनके मुंह से आवाज निकली नहीं ,कि वस्तु उनके सामने हाजिर कर दी जाती है। वे इस चीज को सीख ही नहीं पाते की जिंदगी मे कोई भी चीज ऐसी नहीं है जो हासिल नहीं कर सकते।

 जब बच्चे बड़े होते हैं, तो उनमें यह भावना होती है कि मैं जो चाहूं, जिस समय चाहूं, वह मेरे पास उपलब्ध होना चाहिए। और इसमें अगर कहीं उन्हें ना सुनना पड़े। तो उसके परिणाम बहुत बुरे आते हैं।
मान लिया जाए कोई लड़का किसी लड़की को प्रपोज करता है लड़की इंकार कर जाती है। वह तो अपने दिल पर ले लेता है और कुछ इस तरह की गलती कर जाता है, जो ना तो उसके लिए सही है, ना ही हमारे समाज के लिए।

आजकल हमें आपको देखने और सुनने में यह भी चीज मिल रहा कि लड़कियों के चेहरे पर एसिड फेंक दी जाती है। उनकी हत्या कर दी जाती है या फिर रेप कर हत्या कर दिए जाते हैं। यह सब क्या है? ऐसी चीज है, जिसे समाज किसी तरह से बर्दाश्त नहीं कर पाता।

अभी जो हम भविष्य के लिए बच्चों को तैयार कर रहे हैं। उसमें पढ़ाई की जो विशेषता हमने बच्चों को बताई है। वह यही है। आप अच्छे से पढ़ोगे तो अच्छी से अच्छी नौकरी मिलेगी और काफी अच्छे मोटे तनखा मिलेंगे। हमने अपने बच्चों को यह नहीं सिखलाई आप अच्छे इंसान बनोगे तो और भी बहुत कुछ आपको जिंदगी में ऐसे मिलेंगे जिसकी आपने कल्पना भी ना की हो।

Bacche ko Ham doctor engineer banane ki baat karte hain बच्चे भी मन लगाकर अपनी सारी मेहनत से जी लगाकर पढ़ाई करते हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है लाख मेहनत करने के बावजूद भी वे कंपटीशन की दुनिया में फेल कर जाते हैं।

फिर परिणाम। हमारे सामने आता है। वे या तो सुसाइड कर लेते हैं उनको लगता है कि अब मेरे लिए जिंदगी में रखा ही क्या है? मैं जी कर क्या करूंगा मैंने इतनी मेहनत की सारा का सारा बर्बाद हो गया।  मैं असफल हो गया और इस तरह वह आत्महत्या तक कर बैठते हैं। अपनी हारी जिंदगी को देखकर।
दूसरी तरफ अगर हो जिंदा रहते भी हैं तो घुटन उनके अंदर रहती है ,जो अंदर ही अंदर उन्हें खाते रहती है कि मैं असफल हो गया और यह उन्हें अशांत कर डिप्रेशन तक ले जाती है। डिप्रेशन में जाना तो अपने लिए, समाज के लिए, किसी के लिए भी हितकारी नहीं हो सकता ।

हमारे समाज में खासकर लड़कों के साथ इस तरह की बातें अधिक होती है। पैरंट्स उससे बहुत ही अधिक आशा लगा बैठते हैं। भले ही बच्चे में उतनी काबिलियत ना हो। माता पिता उन पर तरह-तरह के आशा लगा बैठते हैं तुम्हें डॉक्टर बनना है, तुझे इंजीनियर बनना है, तुझे इंजीनियरिंग सर्विसेज करना है, तू यह बनेगा तुम वह बनेगा।

और जब बच्चा देखता है कि मैं नहीं बन पाया कुछ भी अपने माता-पिता की नजरों में। मैं कुछ नहीं कर पाया असक्षम रहा तो वह अपना जीवन हहीत्याग देता है। और फिर माता-पिता के लिए कितने दुख भरी बातें होती है ?  पेरेंट्स समझ नहीं पाते हैं उनका आज इस तरह से कहना बच्चे पर दवाब डालता है और परिणाम स्वरूप वह अपने को संतुलित नहीं कर पाते और मानसिक संतुलन खो देते हैं। वो डिप्रेशन में चले जाते हैं।
हमारे देश में लड़कों के साथ, लड़कियां भी इसकी शिकार होती हुई दिख रही है। लड़कियों को शुरू से थोड़ी सी ना सुनने की आदत परिवार से ही होती है। सुनने में थोड़ी सी अजीब बात लग सकती है। लेकिन आज भी ऐसा देखने में अक्सर मिलता है कि लड़कियों की हर एक बात पेरेंट्स आंख बंद करके नहीं मानते और लड़कियों को ना सुनने की आदत  हो जाती है। इसलिए लड़कियां जब ससुराल में जाती हैं तो वहां एक नए वातावरण में उनको ना सुनने को मिलता है ,लेकिन बचपन से ना सुनने की आदत हो तो इस चीज को झेल जाती हैं। लेकिन ऐसा नहीं कहा जा सकता बहुत बार लड़कियां भी डिप्रेशन की शिकार हो जाती है।

तो अब पेरेंट्स होने के नाते आपका क्या फर्ज बनता है ? हमारा फर्ज है कि हम बच्चे को बचपन से ही ना सुनने की आदत डालें। उन्हें समझाएं कि मेहनत करनी आपको है लेकिन सफलता- असफलता दोनों मिल सकती है और इसके लिए आपको तैयार रहनी चाहिए । जिंदगी में यह  कंपटीशन एग्जाम ही सब कुछ नहीं है जिंदगी अपने आप में एक बहुत बड़ी परीक्षा है । उसमें आपको एक अच्छे इंसान, एक अच्छे नागरिक बनकर आगे बढ़ना है लोगों में खुशी बांटने है। इस देश को आप की आवश्यकता है आप खुद के लिए नहीं संसार की अमानत है।

ईश्वर की दी हुई बहुत बड़ी इनायत है आपकी जिंदगी। इससे बड़ी कोई कंपटीशन नहीं इसके सामने कोई एग्जाम नहीं। आप जैसे भी हैं आप बड़े हैं आपसे बड़ी कोई भी वस्तु इस संसार में है ही नहीं। हर चीज हर काम, जो हम चाहें वह नहीं हो सकता। सब कुछ हमारे अनुसार नहीं जा सकता। हम इंसान। चाहे तो सूरज निकले ना चाहे तो नहीं निकले ऐसा हो सकता है क्या ?

आपके पास पैसे हैं? आप अपने बच्चे को हर खुशी। खरीद कर दे सकते हैं उनकी हर एक इच्छा को चुटकी बजाते पूरी कर सकते हैं लेकिन याद रखें। आप उन्हें ना सुनने की भी आदत दें ताकि भविष्य में जब उन्हें कभी ना सुनने की। जरूरत पड़े तो वे अपने को संतुलित कर पाए ना के साथ जीना सिखाने की यह प्रवृत्ति आपके बच्चे को
आपको सफल बनाता हैं
जिंदगी में सफल बनाएगी।

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