मैं बरगद था किस्मत में जमीन मुत्तसर न हुआ।
किस्मत में मेरी गमला ही आखिरी पड़ाव हुआ।
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Kismat me jamin mutsar na huwa |
कसूर क्या था मेरा जो वृक्ष नहीं बोनसाई हुआ।
कसक दिल में रह गई पथिक को छांव देने की।
पक्षी की चहचहाहट कोयल की तान सुनने की।
टहनियों पर रंगबिरंगी पंक्षी के घोंसले देखने की।
सुगबुगाहट सुनाई देती अंडे से चूज़े निकलने की।
कितना मनोहर दृश्य होता मां बच्चों को दाना चुगाने की।
झूंड बना पंख फैला अंबर में सम्राज जमाने की।
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