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स्त्री को भोग्या नहीं संगिनी बनाते हैं

  पुरुषों के स्पर्श की मंशा 

डरती नहीं हूं पुरुषों की व्याख्या करने में संकोच करती हूं। 

पुरुषों के स्पर्श करने की मंशा अलग-अलग होती है।
हर पुरुष के स्पर्श की भाषा अलग होती हैं समझती हूं। 

माथा चूमते हुए पिता का स्पर्श आश्वासन दे जाता है।
इस स्पर्श में निष्ठा सद्भाव और अपनापन का भाव होता है।

भाई का कसकर प्यार से गले लगाना समझती हूं।
पाखंड रहित स्पर्श, सुरक्षा स्वीकृति का अधिकार दे जाता है।

प्रेमी के स्पर्श का भाव कुछ - कुछ ऐसा आशापूर्ण होता है।
कामुकता और कुदृष्टि इसमें दूर-दूर तक नजर नहीं आता।

ऐसा विश्वासी कंधा होता है,जिस पर सर रखकर रो सकते हैं।
कुछ हाथ जो हर घड़ी आपका आंसू पोछने को तैयार रहता है।
वो ऐसे मित्र पुरुषों के हाथ होते हैं जो सुरक्षा का भाव देते हैं।

मित्रों के स्पर्श में अपनी सीमा रेखा का सर्वथा भान होता है।
स्पर्श में स्त्री आदर्श सम्मान की रक्षा करते रहने का ज्ञान होता है।

ऐसे अनजान पुरुष का युगों से प्रादूर्भाव
होता आया है।
जिनका स्पर्श मित्रता को उच्चे स्तर पर ले जाते सर्व विदित है।

पति के प्रणय समर्पण का स्पर्श तृप्ति का सार है मैं जानती हूं।
जीवन भर का स्पर्श का भाव, प्रेम का बंधन है, ऐसा मानती हूं।

कहां मैं अनजान हूं, कुछ जाने-अनजाने अवांछित स्पर्शों से।
वह नापाक स्पर्श (हाथ) नहीं दृष्टि से भी नंगा कर जाती हैं।

ऐसा कोई अंजाना स्पर्श दिलो-दिमाग पर जख्म दे जाता है।
अशुभ स्पर्श स्त्री के मन मानस को क्षत-विक्षत कर जाता है।

यह अकेला स्पर्श पूरी स्त्री जाति के वजूद पर सवाल उठाता है।
मां,बहन,बेटियों के मन शरीर दोनों को खंडित कर जाता है।

यह घृणित स्पर्श पुरुष जाति की मंशा स्पष्ट कर जाती है।

हे नवयुग निर्माता इस बार कालान्तर के पापों को धो डालते हैं।
इस बेटी 👸 दिवस पर स्त्री को भोग्या नहीं संगिनी बनाते हैं।

कालान्तर के पापों को धो आते हैं 



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