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पल दो पल का साथ तुम्हारा था

भूलने की हिदायत के बवजूद तुमको ही पुकारा था।


भावना में बहकर तुमको ही दे डाला था

दुनिया के भीड़ में दिल कुछ इस तरह घायल हुआ।

तन्हाई में रहकर मुझे ख़ुद से मुहब्बत हो गया।

चार कदम पर घर था उसका दिल कोसों दूर कर गया।

लोगों का हुजूम था किसी से ना कोई उम्मीद था।

ना कोई हसरत रही ना किसी का उम्मीद था।

किसी की आरजू में दिल कुछ इस तरह घायल हुआ।

अकेले में रहते रहते खुद से मुहब्बत हो गया।

जिंदगी की अदालत में कोई कब किसका सहारा था। 

बस एक बार तुम सुन लेते दिल से तुझे पुकारा था।

भावनाओं के आंसुओं में बह गया जज्बात हमारा था। 

तार तार हो गई जिंदगी जब खत मेरा लौटकर आया था।

तुम्हारे भूलने की हिदायत के बाबजूद तुमको ही पुकारा था।

मौत के दहलीज पर भी तुम्हारी यादों का सहारा था।

आशा और विश्वास हमारा कुछ टूट गया कुछ बिखर गया।

इतनी लम्बी जिंदगी थी पल दो पल का साथ तुम्हारा था।

अलविदा कह दूं कैसे दिल मुझसे ही बगावत कर देगा।

किसी दिन भावना में बहकर इसे तुमको दे डाला था।






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