Ticker

6/recent/ticker-posts

Header Ads Widget

क्षणिकाएं

         

अपना जैसा दिखता था 

 क्षणिकाएं 

मैं और रात की आलम ए तन्हाई।

ऐसे में आज बहुत तेरी याद आई।


बैठी हूं तेरे इंतजार में अब भी तू लौट कर आएगा।

जानती हूं तुम ना अब कभी लौटकर आएगा।

सोचा ना था जाते-जाते अलविदा कह कर जाओगे।

तेरे जैसा कोई था ही नहीं बस यही बताने आई हूं।

तुझको पाने नहीं बस ऐ तुम्हे समझाने आई हूं।

मेरी नजरे वहीं तक देख पाती जहां तक तू है।

कदम चलकर वहीं तक जाती जहां पर तू है।

जाते-जाते उसका अलविदा कहना समझा गया ना वो लौटकर आएगा।

ताउम्र विस्मृत नहीं कर पाऊंगी तुम्हें।

लौटे नहीं मेरी प्रतीक्षा अंतहीन रहेगी

तुम्हें पा नहीं सकता किसी को समझा नहीं सकता।

ये खामोशिया देती है ये आलमे तन्हाई।

ये कमाई दौलत है विरासत से नहीं आई।


तुम्हें पा नहीं सकता किसी को समझा नहीं सकता।

तुम्हे खोकर भी बस तुम्हारी ही याद आई।

मैने तो तुमको खुद में महसूस करने की सजा पाई।

तमाम उम्र हमें चेहरे पढ़ने की हुनर ना आई।

तुम्हे मेरी खामोशी में छुपा प्यार नज़र ना आई।

मैं इंतजार करता रहा उसका 

जिसको इंतजार था औरो का।


मृग मरीचिका निकला वह

जो सागर जैसा दिखता था।


मैं कह भी न सका उसको अपना

जो अपना जैसा दिखता था।

Post a Comment

0 Comments