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हां मैं भाग रही हूं प्रेम प्यार जैसे शब्द से

 

जी हां मैं खुद से भाग रही
रूह में बसा था फिर अलग कैसे हुआ 

 

कल सपने में तुमने एक सवाल कर दिया।

जब रूह में बसा था मैं, तो जुदा कैसे हुआ?


हम दोनों का बहुत गहरा रिश्ता हो गया।

शायद इसी से तुम मुझसे जुदा हो गया।


मैं किताब थी तुम उसके पाठक।

तुमने पढ़ना छोड़ दिया तो 

मैंने भी लिखना छोड़ दिया।


तुम कभी समझ ही नहीं पाए 

तुमसे कितना प्यार किया।


तुम प्रेम से अनभिज्ञ रहे और 

मैं तेरे प्यार से वंचित रहीं।


प्रेम अकारण तेरे जीवन में आया 

तुम उसका कारण ही खोजते रहें।


जिस प्रेम के लिए संसार लालायित रहता है।

हृदय पट बंद कर तूने उससे वंचित कर दिया।


मेरे किस्मत में तुम्हारा प्रेम नहीं था।

तुम्हारी अनभिज्ञता ने इसे खो दिया।


कभी फुर्सत में देखना 

मेरे फोन कॉल मैसेज जो, अनुत्तरित रह गया।

रूह का प्रेम हृदय का स्पर्श, ना पाकर मर गया।


तुम्हारे सपने में उठाए प्रश्न का जबाब 

मैंने अपने पूरे होशोहवास में दिया है।


मेरी अंतिम यात्रा में जाते समय सोचना

तुम्हारे एक पुकार पर बेवक्त मेरा आना।


मैं तुम्हारे बांहों में अपने को महफूज समझती

इससे पहले ही तुम अनंत की तरफ़ चल दिए।


स्त्री जिसे प्रेम करती है 

उसे सम्हाले रखना पुरुषों का दायित्व होता है।

पुरुषों की बाहों में ही पूरी सृष्टि समाई होती है।


कितने शिद्दत से सम्भाल रखा मैंने संजोए रखा है।

जिंदगी से चले गए हो तो सपनों में आना छोड़ दो।


डरती हूं मुझे फिर से तुमसे प्यार ना हो जाए।

मैं दुबारा तुम्हारे प्यार में पड़ना नहीं चाहती।


मैं खुद को फिर से दर्द देने से बचा रही हूं।

हां मैं भाग रही हूं, प्रेम प्यार जैसे शब्द से।

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