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कोई पन्ना फाड़ा या मोड़ा नहीं

 


ना उम्मीदी तक मेरे राह की दीवार ना बन

मुझ पर इल्जाम लाखों सही 
मेरे राह की दीवार ना बन 

ना उम्मीद तक मेरे राह की दीवार ना बन।मेरे पैगाम को मेरे खुदा तक पहुंच जाने दें।


जिंदगी उस राह पर लेके चली 

जिस राह पर हमें जाना न था।


कितने खुशनसीब है वो जो हर वक्त तुझे देखते हैं।

मेरी बदनसीबी एक झलक के लिए तरस जाता हूं।


मैंने कब चाहा तुम मिल जाओ मुझे।

गैर ना हो जाओ बस इससे डरता हूं ।


मेरी हसरत नहीं की मुझे मिल जाओ।

डरता हूं कि तुम कहीं गैर ना हो जाओ।


लिखने वालों से यह पूछना लाजमी है।

मुहब्बत हो गई या तेरी मुहब्बत खो गई।


कुछ अजीब सा है मेरा तुम्हारा रिश्ता।

ना कभी तुमने बांधा ना मैंने कभी छोड़ा।


मेरे दर्द का एहसास न हो जमाने।

झूठी हंसी में खुद को ढंक लेता हूं।


मुझ पर इल्ज़ाम हजारों सही।

पर मेरी खता कुछ भी तो नहीं।


पढ़ना चाहे  पढ़ लो पूरी हमें।

हमने छुपा रखा कुछ भी नहीं।


खुली किताब रखी है बस्ते में।

कोई पन्ना फाड़ा या मोड़ा भी नहीं।


कुछ कोरे पन्ने वहां पड़े होंगे उठा लेना।

मुझे पर जो इल्ज़ाम है तुम लिख देना।


जन्नत या जहन्नुम में जहां भी भेजीं जाउंगी।

जहां भी मैं जाऊं कान्हा से तो सामना होगा।


सज़ा सुनाते हाथ उसका भी कांप जाएगा।

जब कभी अपने हक की अर्जी लगाई है।

जमाने ने दोषी करार दे फैसला सुनाई है।


प्रेम करना गुनाह है फिर उसने किया क्यों।

मैं सज़ा का हकदार तो वो बच गया क्यों ?


भगवान नहीं इंसान बनकर वो यहां आया था।

एक गुनाह की सज़ा एक ही होगी बताया था।


प्रेम प्यार मोहब्बत का प्रथम गुरू उसे बनाया था।

प्रेम प्यार हो या युद्ध में सब जायज़ बताया था।


इस ज़माने ने कान्हा पर भी तो इल्ज़ाम लगाया था।

राम पर भी धोखे से बाली को मारने का आरोप था।

कान्हा आपने भी अपने वचन तोड़ अस्त्र उठाया था।


इतने आरोप है आप सफाई देते -देते थक जाएंगे।

जब आपको नहीं छोड़ा फिर हम किस खेत की मूली हैं।

आप शायद सब कुछ भूल गए हम कहां कुछ भूलें है।

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