मु़आफी मांगना बाकी है
बिखरे सामानों को संभालने वक्त तो लगता है
दिवाली की सफाई में घर में मिली कुछ वस्तुएं।
कुछ टूटी फूटी यादें जिनको मिटाना बाकी है।
कुछ सुनहरे लम्हों की टूटी मोती चुनना बाकी है।
गुस्से में फाड़ें ताश पत्ते रानी के चिथड़े उठाने बाकी है।
मज़ाक में तेरा थोबड़ा कहना और मेरा लूडो फाड़ना?
तन्हा परे लूडो के पासे से मुआफी मागंना बाकी है।
भूली-बिसरी सारी यादें चलचित्र सी चलती गयी।
और मैं दर्शक बन इनमें बीते लम्हों को ढूंढती गयी।
देर से आना फिर नया बहाना बनाना याद आ गया।
मेरा मुंह फुलाना फिर खुद मान जाना याद आ गया।
हर आहट पर हसरत भरी निगाहों से दरवाजा तकना।
दरवाजा से लौटती भरी आंखों को समझाना याद आया।
कुछ ठोंगे कुछ डोगे कागज़ की फटी अब भी पड़ी है।
घर में तेरे बदन की फैली खुशबू अब भी बरकरार है।
आईने पर चिपकी बिंदियां निकालना बाकी है।
टूटी कंघी,सेविंग क्रीम ब्लेड ज्यों का त्यों पड़ा है।
फटी तस्वीरें जो तुमने उस एक लड़की की फाड़ी थी।
उस लड़की पर मेरा सवाल उठाना तेरा झल्लाना याद है।
मुझसे गुस्सा कर टूकडों फाड़ मेरे मुंह पर फेंकना याद है।
उसे जोड़कर उसको पहचान सकू ऐसा बनाना बाकी है।
काम बहुत है समय है थोड़ा ना हैं कोई साथ हमारे।
थक जाती बैठ जाती फिर उठ काम में लग जाती हूं।
मन भरा, भरा सा है, दिल में तूफ़ान है मचल रहा।
आंखों से बहती अविरल अश्कों को छुपाना बाकी है।
एक सवाल जो दोनों का था आखिर क्यों ?
इसका जवाब ढूंढ़ना बाकी है।
सोचती हूं बैठकर ,🤔
जो चिट्ठी लिखी नहीं गई वो बातें मन में पड़ी होगी ?
चिट्ठी जो लिखी गई गंतव्य तक पहुंच गई पढ़ ली गई।
उस चिट्ठी का क्या हुआ,जो लिखी गई पर पहुंची नहीं ?
रास्ता भटका खत जब वर्षों बाद पहुंचा तो क्यों पहुंचा?
क्या बर्षा जब कृषि सुखाने अंत समय अब क्यों पछताने।
बस अब कारवां गुज़र गया गुब्बार देखने से क्या फायदा।
जो खो गया वह मिला नहीं चाहे उम्र भर उसे पुकारते रही।
खो गया जो सबसे प्यारा था वैसा कोई कहीं भी दिखा नहीं।
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