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कभी मेरे नाम से ना आना

भ्रमित मन मेरा और भ्रमित हो जाता

भ्रमित मन मेरा
हद हो गई छः वर्ष लग गए खत पहुंचने में।


छः साल बाद आई चिट्ठी मेरे नाम की।

थोड़ा गम थोड़ी खुशी लेकर आई चिट्ठी।


छः साल बाद धनतेरस गिफ्ट में आई चिट्ठी।

थोड़ा गम थोड़ी खुशी लेकर आज आई चिट्ठी।


कुछ मैं रख लूं कुछ तुमको गिफ्ट कर दूं।

गम सारे रख लूं खुशी तुमको अर्पण कर दूं।


एकबार पहले भी एक चिट्ठी खोई थी।

जब मिली तो जी भरकर दोनों रोए थे।


खो गई थी खोई रहती तो जी लेते हम।

हमें जुदा कर दिया फिर मिलने आई थी।


फिर छः साल बाद आई एक चिट्ठी मेरे नाम की।


कहते हैं वक्त अक्सर हर बात दुहराता है।

समय का यह दुहराना हमें कहां भाता है।


उस बार खत ने मुझे कितना रूलाया था।

हर टहनी हर पत्ते को अपना दर्द सुनाया था।


फिर छः:साल बाद तू आई चिट्ठी मेरे नाम की।

चलो पढ़ती हूं उनको भी हर हाल सुनाती हूं।


चलो इतने देर से आने का वज़ह ना पुछूंगी।

कितना दर्द हुआ भ्रम टूटने पर तू भी ना पूछोगी।


कितने खुश हुए हैं वो ना कभी बतलाएंगे।

फिर छः साल गीना के नाम एक चिट्ठी आई है।


जाने क्या गुनाह किया मेरी चिट्ठी खो जाती है।

खो जाती है फिर क्यों वह लौट कर आ जाती है।


समय पर मिल जाती तो बता तेरा क्या जाता।

भ्रमित मेरा मन क्या यू देव- देव चिल्लाता।


जो भी कुछ था पास मेरे तू उसे भी लेकर जा।

जा री चिट्ठी जा अब कभी भी मेरी बन कर ना आ।


मैं ऐसे ही भ्रमित हो पागल सी यहां वहां भटकूं।

होंठों पर ला हंसी मैं सबको भ्रमित सा कर दूं।


मेरे दिल का दर्द मेरी जुबां को भी नहीं बताना।

किसको सुनाऊं दर्दे दिल तुम मुझे जरा बताना।


आंसू को बना हथियार अंतिम सांस तक लड़ना है।


जा री चिट्ठी जा अब कभी भी मेरी बन कर ना आ।

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