हृदय के भाव अभाव में सुबकते रहे
जीने को कहते हो तो, जीने का कोई वज़ह तो बता दो।
शाम मेरे नहीं सुबह मेरा नहीं
दिन का कोई एक पहर दे दो।
जीने को कहते हो तो जीने का कोई वजह दे दो।
रात्रि में नींद का पहरा नींद में तेरे आ सकूं इतना तो दे दो।
जीने को कहते हो तो, जीने का कोई वजह तो दे दो।
पूजा थाली मेरी खाली ही रही
फूलो को मैंने तोड़ा ही नहीं।
माली बन संवारा उस पुष्प पर
थोड़ा सा हक मेरा तो दे दो।
रुठे है जो इष्ट उनको मेरे,नहीं तोड़ने की वज़ह बता दो।
जीने को कहते हो तो, जीने की कोई वजह तो दे दो।
आईना असली चेहरा दिखलाता रहा, मैं उससे कतराती रही।
तेरे आंखों में अपना मुखरा देखकर,
मैं सदा इतराती रही।
देना चाहो तो मेरा फिर से आईना पुराना दे दो।
जीने को कहते हो तो जीने का कोई वजह दे दो।
आईने से आमना-सामना हुआ, टूटकर मैं बिखड़ सी गई।
दर्पण बना लो आंखों को, देखने का कोई बहाना दे दो।
जीने को कहते हो तो, जीने का कोई वजह दे दो।
खत लिखता रहा मिटाता रहा
जला कर उसे भस्म करता रहा।
ह्रदय के प्रेम भाव मेरे सदा
तेरे अभाव में सुबकते रहे।
मन की बेचैनी छुपाने को मै
कलम उठा फिर लिखता रहा।
लिखने को कहा है तो लिखने की कोई वज़ह तो दे दो।
जीने को कहते हो तो, जीने की कोई वजह तो दे दो।
कहां भेजूं ख़त कहां रहते हो तुम, अब तुम अपना पता दे दो।
तुम तक पहुंच सके पत्र मेरे,मुझको तुम बस दुआ दे दो।
सजने- संवरने की नहीं जरूरत, मुझको बस एक लाल चुनरी दें दो।
मेरे अजनबी,या तुम मुझ अपना ही रंग सुनहरा दे दो।
अर्जी कबूल करें मेरा, ऐसा एक मुझे खुदा दे दो।
जीने को कहते हो तो, जीने की कोई वजह तो दे दो।
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अर्जी मेरी कबूल करें ऐसा एक खुदा दे दो |
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