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ताउम्र मुझे इसका मलाल है

Jindagi chalti rahi 


शायरी अल्फाज़ सजाने संवारने का नाम है।

मिल जाए तो इश्क कहते ना मिले तो याद है।


अगले जन्म में मिलेंगे इत्मीनान से।

मिलने को तो मिल जाए तुमसे पर।

इस जन्म में तुमको फुर्सत नहीं है।

आसमान धरती मिलता दिखता है।

पर ऐसा नहीं है, फासला बहुत है।


तेरे देखने से दिल को राहत और शुकून मिले।

मेरे लिए इस जन्म में बस इतना ही बहुत है।


ढ़ूढने से तो मिल जाएंगे हजारों तुम सा।

भा जाए दिल को कोई ऐसा लगता नहीं है।


हमें तो तेरे ख्यालों से ही फुरसत नहीं मिलती।

कौन क्या कर रहा है देखने की फुर्सत कहां है।

ख्यालों में हम उनको ही लाते हैं जो अपने होते हैं।

ख्यालों में उनके आते हैं जो हमें अपना समझते हैं।

याद हम उनको करते हैं जो अपने होते हैं।

याद हम उनको आते हैं जो हमें अपना समझते हैं।


सफ़र में तेरे साथ ना चल पाई प्रिय।

रुकावट से घबराकर भागी थी सखे।

सारी उम्र मुझ को इसका मलाल है।


मेरी मौन तेरे चंचलता पर भारी रही।

क्या कहूं सफ़र तेरे वगैर कैसी रही।

जिंदगी चलती रही मैं वहीं खड़ी रही।


चिलचिलाती धूप में तेरे सा छांह खोजती रही।

सर्द हवाओं के झोंके में भी तेरा साथ ढूंढती रही।

आती - जाती सांसे मेरी याद तेरी दिलाती रही।

कोई नाम मेरा पुकारे तो याद तेरी ही आती रही।


सफ़र आसान तो नहीं है प्रिय।

मन को स्थिर कर चलना होगा।

ज़ख्म भरने का इंतजार ना कर।

वक्त के भरोसे भी ना रहना होगा।

चोट पर खुद से मरहम रखना होगा।


पता तुम्हारा पास नहीं तुमको बुलाऊं तो कैसे?

मन के भाव,हर एहसास तुम तक पहुंचाऊ कैसे?

वैसे तो तुम संग मेरे हर पल ख्यालों में रहते हो।

सब दुःख दर्द सुनते हो पर तस्वीर बने रहते हो।


ठोकरें खाकर खुद को संभलना कहां आसान है।

तोहमतें लगाने वाले को भूलना कहां आसान है।

रास्ते में छोड़ने वाले को भूलना नहीं आसान है।

खो दिया तुमको सखे मुझे ताउम्र इसका मलाल है।


मैं चली होती गर साथ तेरे प्रिय।

क्या तुम भी साथ मेरे चला होता।

हाथ पकड़ सहारा कंधे का दिया होता।

भयभीत होकर जग से भाग गया होता।


खाली पन्ने जो छोड़े थे तुमने।

उसको ही मैं बस भर डाला।

तेरा नाम मैं उसमें लिख डाला।

इसके अलावा लिखता भी क्या?

जो लिख डाला सो लिख डाला।



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