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पैगाम नही दूंगा

कोई सफ़ाई नहीं दूंगा 


कहते हो शक है तो, शक के जद़ में रहो तुम।

बार-बार मैं अब तुमको कोई सफ़ाई नहीं दूंगा।


मेरे सपनों पर पहरा लगाने का हक नहीं दूंगा।

दे दूंगा सब पर अपने मन की गहराई नहीं दूंगा।


कब? कहां? क्यों? कैसे का हिसाब नहीं दूंगा।

पूरा आसमान रख छोड़ा है तुम्हारा है तुम ले लो।


अपने पैर खुद की बनाई जमीन पर रखा है मैंने।

अपने पैर के नीचे की जमीन छूने भी नहीं दूंगा।


तुमने मेरी मोहब्बत देखी है मेरी जिद नहीं देखी।

जिद देखी है जिसने मैं उसे कभी दिखाई नहीं दूंगा।


मेरे दिल के हर धड़कन में है शामिल अब भी।

पर उसको अब अनजान समझ पैगाम नही दूंगा।


अब भी हर रोज देखा करता हूं छुप कर उसको।

मुझे उससे मुहब्बत नहीं है जतला दूंगा उसको।


मैं उससे बात नहीं करता तो क्या आपको लगता है।

मांग दें अगर जान मेरी, तो क्या उसे जान नहीं दूंगा।

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