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मैं नहीं कहती जमाना कहता है

तन और मन में अंतर 

मैं नहीं कहती जमाना कहता है

वक्त के साथ ज़ख्म भरता नहीं,

दर्द बर्दाश्त करना सीख जाते हैं।


हर हाल में खुश रहते नहीं दोस्त,

झूठी मुस्कान ओढ़ना सीख जाते हैं।


जिस ज़ख्म को छुपाकर रखते हैं।

अकेले में आंसू बहा निकाल देते हैं।


जीतने को मैं भी जीत जाता ऐ दोस्त।

दोस्तों को जीताने को हम हार जाते हैं।


मन और तन में जमीन आसमान का फर्क है ऐ दोस्त।

तन विज्ञान है मन से तो विज्ञान भी हार जाता हैं।


मेरी सोच को तुम घटिया कहते हो यार।

मेरी सोच में तो हमेशा तुम ही रहते हो।


भीतर बाहर ही शून्य नहीं शून्य सारा संसार है।

शून्य में विलीन खुद को ढूंढना कहां आसान है।


कौन कहता है आपकी बद्दुआएं बेअसर होती है।

आपकी बद्दुआ लगती तो कब का निपट गया होता।

गर मै दोस्तों की इतनी दुआ समेट ना रखा होता।

आपकी बद्दुआ कभी बेअसर नहीं हुआ होता।


मैं नहीं कहती लोग कहते हैं -

रेस में दौड़कर हरानेवाले को लोग जावांज कहते हैं।

सुनो तोड़कर हरानेवाले को लोग जल्लाद कहते हैं।






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