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मेरी शायरी में नाम तक लिया नहीं

PahuchegekahaPatanahi

कब रात हुई कब भोर हुआ 

कुछ पता नहीं ?

निकले थे कहां जाने के लिए 

पहुंचेंगे कहां पता नहीं ?

जिंदगी के डायरी में बस एक सवाल है,

गिला-शिकवा उसे है जो कभी मिला नहीं।


ग़ज़ल शायरी कविता मेरे अल्फ़ाज़ है सही,

मेरे शायरी में नाम तक तेरा मैंने लिया नहीं।


मन की बात भी कागज़ पर उतारना गुनाह है,

तेरी बेवफ़ाई का जिक्र तक हमने किया नहीं।


जमाना समझता रहा तुम्हें ग़लत यह और बात है।

कितने ज़ख्म खाएं है तूने ज़माने ने देखा ही नहीं।


बेखुदी में सारे चेहरा तुम सा ही क्यूं लगा?

शायद मुझे अब तलक भी तेरा इंतज़ार है।


होश में आया तो हर इक चेहरा अनजान सा लगा।

कुछ निखारा सा दिखा तो कुछ बिखरा सा लगा।


एक दिन याद आएगी मेरी बेमतलब की लड़ाई।

ढ़ूढते रह जाएगा तू उस दिन, साधारण सा चेहरा।


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