जायका कड़वा लगा
थोड़ी सी क्या पूरी तरह बदल गई हूं मैं।
देखो तुम्हारे चिढ़ाने से चिढ़ती नहीं हूं मैं।
मुझे गुस्से में देखकर तुमको हंसी आती थी।
बस इसी खातिर हरपल मैं गुस्से में रहने लगी।
तेरी हंसी में बसती थी मेरी सारी दुनिया।
ऐसा लगता मेरा दिल तुम्हारा ठिकाना रहा।
यूं ही नहीं धड़कता है दिल किसी के लिए।
किसी जन्म का लगता है रिश्ता पुराना रहा।
दूरी में नजदीकी नजदिकियों में दूरी को देखा।
आंखों को खामोशी की जुबान समझते देखा।
दिल के चटकने की ध्वनि तुम तक नहीं पहुंचे।
दिल की खिड़कियां दरवाजे बंद करके रखा।
जब अपना होना ही निर्रथक लगने लगा।
तेरे होने ना होने का मतलब बदलने लगा।
घमंडी कहनेवाले मुझे अपना गुरूर खलने लगा।
इंतजार करने की आदत तो पहले से थी लगी।
इंतजार की आदत अब इबादत में बदलने लगा।
तेरे साथ रहने का शुकून तन्हाई में मिलने लगा।
अपनी जिंदगी किसी औरो की अमानत लगी।
जिंदगी तुझे जीने का मेरा नजरिया बदलने लगा।
रंग रूप उम्र या पैसा सिर्फ समय और संख्या लगे।
मौन से वाचाल और फिर खामोश होना अच्छा लगा।
प्यार,मुहब्बत इश्क जैसे शब्द सुनने में जायकेदार थे।
सारे के सारे शब्द चखने निकले जायका कड़वा लगा
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