1)
आदतन हम झूठ नहीं बोलते।
झूठ बोलने की नौबत आती है।
जब कोई पूछे सब खैरियत तो है।
समझा नहीं हमें जगा देखकर,
साथ देने चिराग जला करता है।
या मैं चिराग को जलता देख जगा करता हूं।
हम दोनों का एक - दूसरे के साथ जलना ही,
नैसर्गिक प्रेम अद्भुत प्रेम की तरफ ले जाता है।
जो अपने लिए नहीं, अपनो के लिए जलते है।
2)
पतंग बहुत दूर हवा में चला जाए तब,
धागा तोड़ देना ही समझदारी है जितना,
सुलझाओगे तो उलझता ही चला जाएगा।
धागा तोड़कर गुनहगार ही तो कहलाओगे मगर,
होगा क्या ? जब तमाम उम्र ना सुलझा पाओगे।
सुलझाना चाहोगे और भी उलझते चले जाओगे
खाली हाथ मलोगे, टूटे धागों को भी गवांओगे।
3)
तुम्हें लिखने को बहाना नही चाहती हूं।
तुम्हें ढूंढने के बहाने मैं लिखना चाहती।
समझ नहीं पा रही कितना बेरहम हैं तू।
मुझमें रह कर मुझसे ही छुप रहता है तू।
सवालों से डरना छोड़ दिया गुरु ने कहा था।
वगैर जबाब कोई सवाल पैदा ही नहीं होता।
उनकी ताकिद थी मैं हकीकत में रहा करूं।
ख्वाब ही मेरा हकीकत है उनसे क्या कहूं।
कहीं खामोश रहती कहीं पर बोल जाती हूं।
चंचला हूं शरारती हूं कभी चुप हो जाती हूं।
एक तुम्हारे मुखातिब होते सब्र टूट जाती है।
अपनी नादानी पर यारा मैं बहुत पछताती हूं।
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