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नमक का कर्ज मुझ पर बाकी है

वह मुझसे चिपट-चिपट कर रोया 

1)

फूल फल बगीचे से तोड़ कर लें जाने वालों।

तुम सुनो जब वह पेड़ कटा तो केवल मैं रोया।


मुझे उसके खिलाफ भरकाने वालों सुन लो तुम,

उसके खिलाए नमक का कर्ज मुझ पर बाकी है।


बरसों पहले मुझसे बिछड़ गया था लेकिन,

एक नज़र उसको देखने की ललक बाकी है।


जमाना चाहे उसको सितमगर कहता रहे,

मुझे अब भी उसका ग़ज़ल सुनना बाकी है।


आदत नहीं ना लत ना ही लिखना कमजोरी है।

दिलजला आशिक है उसे लिखने की बिमारी है।


तुम चाहे उसे सितमगर कह लो लेकिन,

उसका सितम करना अभी भी बाकी है।


2)

बक्से से तुम्हारा ख़त निकाल कर पढ़ता रहता था।

कल बक्से की चोरी जो हुई वह फूट-फूट कर रोया।


उसके दिल को तब राहत मिलेगी जब तुम लौटकर आओ।


कागज़ क़लम देकर जानेवाला लौट आया।

ऐसा लगता है क्या लिखा हूं, देखने आया।


चौदह साल बाद उससे मुलाकात क्या हुई।

गले मिलते ही गुजरा वक्त फिर पलट आया।


उधर रोता रहा वह तेरी यादों में रात भर।

इधर कागज़ पर सारी रात उसकी कलम रोई।


अब फिर से बिछड़ जाने की तुम ज़िद ना करना।

इतना कहकर वह मुझसे चिपट-चिपट कर रोया।

उसके एहसास से आकाश में फटकर बादल रोया।

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