बस एक बार कह दिया होता
एक वृक्ष पर गोरैया का एक जोड़ा रहता था। दोनों में अगाध प्रेम था। एक-दूसरे के बिना रहने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे।
एक दिन मादा गोरैया के मन में शंका समाया कहीं मुझे छोड़कर यह चला तो ना जाएगा। स्त्री जाति जन्म से शंकालु होती है।
उसने गोरैया से कहा - एक दिन तुम मुझे छोड़कर फूर्र तो नहीं हो जाएगा। गोरैया के लाख समझाने पर भी मादा गोरैया का भय समाप्त होने पर नहीं आ रहा था।
उसे अपने साथी पर अविश्वास हो गया था यह एक दिन मुझे छोड़ कर भाग जाएगा।
नर गोरैये ने उसे बहुत प्रकार से समझाने की कोशिश की लेकिन कहते हैं शक एक बार आ जाए फिर उसका इलाज किसी हकीम के पास नहीं है।
नर गोरैया के पास विश्वास दिलाने का कोई रास्ता नहीं बचा। वह अपने दोनों पंख काट लिया और बोला - अब तो तुमको यकीन हो गया, मैं कहीं जा ही नहीं सकता, मादा गोरैया को बुरा तो लगा लेकिन यह सोचकर कि चलो अब यह केवल मेरा है मेरे को छोड़ कर कहीं नहीं जाएगा।
अब उनके बीच कोई तनाव नहीं,दोनों खुशी से जीवन व्यतीत कर रहे थे। समय को पलटते देर नहीं लगती। गर्मी से नदी तालाब सूख गए, पानी ही नहीं अनाज का भी अकाल आ पड़ा।
दोनों भूख-प्यास से तड़पने लगे।
नर गोरैया ने मादा गोरैया से कहा - सुनो मैं उड़ नहीं सकता, तुम तो उड़ सकती हो। अपनी जान बचाओ जहां अन्न जल मिले वहां चली जाओ। वारिस के बाद फिर आ जाना।
इतना सुनते ही मादा गोरैया अन्यत्र कहीं चली गई। जब मौसम में बदलाव आया तो मादा गोरैया को अपने घर की नर गोरैया की याद आई।
वह उड़ते - उड़ते उस वृक्ष तक पहुंचीं जो उसका आशियाना था।
हे भगवान यह क्या - नर गोरैया का पार्थिव शरीर ज़मीन पर पड़ा था। वह संसार छोड़कर जा चुका था।
ज़मीन पर लिखा था - मैं शायद जिंदा रहता। जाने से पहले अगर तूने बस इतना कह दिया होता - '' मैं तुम्हें छोड़कर नहीं जाऊंगी।''
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