बसंत आ गया अब तो आंओतितली के पंखों से रंग चुराओ
धरती ने ओढ़ा बासंती परिधान,बसंत आ गया ।
पेड़ नई कोपलें पाकर देखो कैसे निखर आया ।
आम भी बौर की सुगंध मादकता बिखेरते आया।
कोयल कूक से छिड़ा राग तेरी याद दिला गया।
नई कोपलें पेड़ों को अवसाद से निकाल लाई।
भंवरें भी फूलों पर अठखेलियां करने आ गए।
मुरझाए पौधे अंजुरी भर पानी पाकर चहक जाते।
बसंती चुनरी पहन धरती इठलाती नजर आती।
इस बसंत की रंगत अधूरी जो प्रिय तुम ना आओ।
अधूरा बसंत पूरा कर हर्षोल्लास जीवन में लाओ।
हमतुम कुछ पल संग मिल बैठे,
आम बौर के खुशबू में खो जाए।
कोयल की पीऊं कहां सुन पाए।
तितली के पंख से तुम थोड़ा सा,
अपने प्रियतमा के लिए रंग चुराओ।
बसंत आ गया प्रिय तुम भी आ जाओ।
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