रिश्तों से बेइंतहा लगाव उसकी कमजोरी है
औरतें चुप नहीं होती,जब चुप हो जाती है।
तो अंदर में बहुत जोर से बोलती होती है।
दिल ही दिल में चित्कार करती होती है।
भावना अतिरेक से आवाज़ रुद्ध होती है।
उसकी आवाज बाहर सुनाई नहीं देती है।
अंदर ही अंदर उसकी खामोशी चीखती है।
संभाल नहीं पाने की विवशता देखती है।
तब किसी से ना लड़ती ना कुछ कहती हैं।
औरतों का मौन चुप होना नहीं होता है।
स्त्री हमेशा अपने आप से लड़ती रहती है।
वह अकेले टूटना और बिखरना सहती रहती है।
जिस पर अटूट स्नेह रहता है।
उससे भी कुछ नहीं कहती हैं।
रिश्ते संभालने वाली चुपचाप कहां रहती है।
स्त्री अपने आप को संभालने में जुटी रहती है।
उसकी चुप्पी रिश्तों के दरार में झांकती रहती हैं।
दरार भरने की कोई तरकीब तलाशती रहती है।
ठीक है आपकी जो मर्जी करो वह तभी कहती हैं।
जब आंसू की आखिरी बूंद गीरा चुकी होती है।
यह वही क्षण होता है जब पूरी-पूरी टूटी होती है।
चुप औरत अपने अस्तित्व को ही नकार देती है।
यह क्षण होता जब उसका कोई भ्रम टूटता है।
अपने अस्तित्व को नकार चुप्पी ओठ लेती हैं।
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