भक्त और भगवान का रिश्ता
भगवत गीता पढ़ ली पूरी कान्हा।
कुरुक्षेत्र में भ्रमित फिर भी खड़ी हूं।
तुम ही कोई राह दिखाओ कृष्णा।
हो सके फिर एक बार तुम आओ।
कौन यहां अपना है?कौन पराया?
हर इक चेहरा मुखौटा से ढ़का है।
किस्मत जब मुश्किल में डाल देता है।
कृष्णा तू हजार रास्ते निकाल देता है।
मशरूफ रहने का तेरा अंदाज कान्हा।
मुझे तन्हा कर सकेंगे तो सकेंगे कैसे?
भक्त और भगवान का यह रिश्ता।
किसी फुरसत का मोहताज नहीं।
रफ़्तार दुगनी कर अपनी जिंदगी पर।
कहोअब और कितना मैं दांव लगाऊ?
दूर खड़ा मुस्कराने वाले मधुसूदन।
तुम्हारे भरोसे कैसे मैं दांव लगाऊ।
यह उलझन मेरी तुम ही सुलझाओ।
किसको अपना समझूं मैं जग में ?
किसको तीर चला कर मैं मारूं।
किसको मैं अपने गले लगाऊं।
असमंजस फिर से आन पड़ी है।
बस इक बार आकर राह दिखाओ।
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