महफ़िल से हम मुंह मोड़कर
दिल रो पड़ा उनको पशेमान देखकर।
मुंह फेर लेते हैं जो हमें परेशान देखकर।
जाहिर ना हो उनसे मेरा कोई वास्ता भी है।
चल दिए तेरी महफ़िल से हम मुंह मोड़कर।
गुरुर बहुत है हमें भी अपने आप पर।
दावा करते नहीं है केवल खानदान पर।
रहने को तो रहते है बहुत सलीके से हम।
गुरुर को रखा करते हैं हम पूरे मकान में।
पुरुष के मन की पीड़ा स्त्री के मन का प्रेम।
समझ नहीं सकता है कोई भी इस जहान में।
जुबान देकर मुकरने वालों के लिए दुआ करों।
कागज़ क़लम की इजाद हुई इनकी वजह से।
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