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Prem baher se andar ki yatra hai |
प्रेम और चाहत में एक गहरा अंतर है, जो हमारी भावनाओं और दृष्टिकोण से जुड़ा हुआ है।
**प्रेम** एक निःस्वार्थ भावना है, जिसमें दूसरे के प्रति गहरी आत्मीयता, सम्मान और समर्पण होता है। प्रेम में स्वीकार्यता होती है—यह व्यक्ति को उसी रूप में अपनाने की क्षमता देता है, जैसा वह है। प्रेम में उसके अलावा और किसी की आकांक्षा नहीं होती - धन, सौन्दर्य सब व्यर्थ जान पड़ता है।
प्रेम स्थिर होता है और समय के साथ गहराई प्राप्त करता है। इसमें त्याग, धैर्य और समझ होती है। प्रेम में बस प्रेम करना होता है यानी प्रेम में पलट कर प्रेम की भी चाह नहीं होती है।
**चाहत** अक्सर एक तीव्र आकर्षण या अधूरी इच्छा से जुड़ी होती है। यह क्षणिक हो सकती है और किसी चीज़ को पाने की लालसा से प्रेरित होती है। चाहत पूरी होने के साथ उसकी महत्ता समाप्त हो जाती है।
चाहत में अक्सर अपने सुख और संतोष की अपेक्षा अधिक होती है, जबकि प्रेम में दूसरे की खुशी और भलाई की चिंता।
**प्रेम देने और स्वीकारने का भाव है, जबकि चाहत प्राप्त करने की अभिलाषा है**।
चाहत बदल सकती है, लेकिन प्रेम समय के साथ और अधिक परिपक्व होता है। प्रेम भी हो सकता है समाप्त यदि यह संसारिक से चलकर ब्रह्म को पा जाए। उदाहरण के लिए तुलसीदास जी पर नज़र डालें
प्रेम में अहंकार का अभाव के साथ शब्दों की भी आवश्यकता नहीं होती, ना ही खूबसूरती मायने रखता है। भावनात्मक सुरक्षा और मानसिक सहारा ही काफ़ी होता।
# मैं हूं ना # शब्द सुनने को ना भी मिलें कोई बात नहीं विश्वास होना चाहिए कोई है, कोई तो है।
यही प्रेम की गहराई और चाहत की क्षण भंगुरता को अलग करता है। प्रेम का गहराते जाना, चाहत का क्षीण होते जाना या समाप्त हो जाना एक दूसरे में अंतर को समझने के लिए प्रयाप्त है।
आपके विचार क्या हैं? मेरे विचार से आप असहमत हो सकते हैं या असहमत ? मैंने दोनों भावनाओं को अपने लेखन में व्यक्त किया है?
चाहत जिस वस्तु या इंसान की होती वो मिल जाए - समाप्त, ना मिले तो मन को समझा कर समाप्त किया जा सकता है।
प्रेम- जिस वस्तु या इंसान से होता है ना उसका मिलना या ना मिलना कोई मायने ही नहीं रखता।
प्रेम मिलन स्थली ही नहीं बिछोह में भी रह सकता है। प्रेम मिले या नहीं सदा रहता है कभी समाप्त नहीं होता, क्योंकि इसमें यात्रा बाहर से अंदर की ओर होती है लौटना संभव ही नहीं है।
किसी ने कहा जिंदगी में चाहत करना प्रेम नहीं। आपका कहना सही है चाहत रखना प्रेम नहीं।
इससे मेरे समझ में एक बात आई है- कि चाहत तो हम किसी वस्तु या इंसान से कर सकते हैं, लेकिन प्रेम हम किसी से कर ही नहीं सकते।
यहां यह भी तो समझना होगा क्या प्रेम करना हमारे वश में होता भी है ? कदापि नहीं ????
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