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Prem ki bhasha Samjhata hai

Apne ko Majnu Shahjhan samjhta hai 

सफेद बाल की फिक्र नहीं मुझे, वह मेरे घुंघराले बालों पर मरता है। 

बढ़ते हुए वजन का चिंता क्यों करना है, वह मेरे दिल पर मरता है।


चेहरे पर आई लकीरों से होगा क्या ? वह मेरी मुस्कान पर मरता है।


उसे जमाने की जरूरत क्या ? वह तो बस मेरी खुशी पर मरता है।


लाली की मुझे जरुरत ही होगी क्यों? वह मेरी ओठों पर मरता है।


सुमधुर गाने की कोशिश क्यों करूं? वह मेरे चिढ़ाने पर मरता है।


भरी हो पकवान थाली , मेरी थाली से छीनकर खाने को मरता है।


हिरनी सी चाल नहीं तो क्या, वह मेरी लड़खड़ाते चाल पर मरता है।


खूबसूरत नाक नक्श आंखें वाला, मुझ काली कलूटी पर मरता है।

 

ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं है पर प्रेम की भाषा समझता है, प्रेम पर मरता है।


मर्द है जाने वो कितनों पर मरता है 

यहीं बातें वह बहुतों से कहता है , मर्द है जाने कितनों पर मरता है।


सोचती हूं कोई नया तरीका अपनाता होगा या सब पर ऐसे मरता है।


ना कोई लैला ना मुमताज़ है, खुद को मजनूं शाहजहां समझता है।

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