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चाहत, प्यार, मुहब्बत नहीं इश्क है प्रेम |
**आपके प्रश्न के प्रत्युत्तर में मैं अपना पुराना ब्लॉग शेयर कर रही हूं।**
प्रश्न - क्या धोखा खाने के बाद दुबारा उसी इंसान से प्यार किया जा सकता है ?
प्रेम और चाहत में एक गहरा अंतर है, जो हमारी भावनाओं और दृष्टिकोण से जुड़ा हुआ है।
**प्रेम** एक निःस्वार्थ भावना है, जिसमें दूसरे के प्रति गहरी आत्मीयता, सम्मान और समर्पण होता है। प्रेम में स्वीकार्यता होती है—यह व्यक्ति को उसी रूप में अपनाने की क्षमता देता है, जैसा वह है। प्रेम स्थिर होता है और समय के साथ गहराई प्राप्त करता है। इसमें त्याग, धैर्य और समझ होती है।
**चाहत** अक्सर एक तीव्र आकर्षण या अधूरी इच्छा से जुड़ी होती है। यह क्षणिक हो सकती है और किसी चीज़ को पाने की लालसा से प्रेरित होती है। चाहत में अक्सर अपने सुख और संतोष की अपेक्षा अधिक होती है, जबकि प्रेम में दूसरे की खुशी और भलाई की चिंता।
संक्षेप में, **प्रेम देने और स्वीकारने का भाव है, जबकि चाहत प्राप्त करने की अभिलाषा है**। चाहत बदल सकती है, लेकिन प्रेम समय के साथ और अधिक परिपक्व होता है। यही प्रेम की गहराई और चाहत की क्षणभंगुरता को अलग करता है।
आपके विचार क्या हैं? इन दोनों भावनाओं को अपने लेखन में व्यक्त किया है?
चाहत जिस वस्तु या इंसान की होती
**वो मिल जाए - समाप्त, ना मिले मन को समझा कर समाप्त किया जा सकता है।**
प्रेम में जिस वस्तु या इंसान से होता है ना उसका मिलना या ना मिलना कोई मायने नहीं रखता। मिले या नहीं सदा रहता है कभी समाप्त नहीं होता।
फिर भी आपका कहना सही है चाहत रखना प्रेम नहीं।
एक बात मेरे समझ में आई है कि चाहत तो हम किसी वस्तु या इंसान से कर सकते हैं लेकिन प्रेम जान बूझ कर नहीं कर सकते। प्रेम करना हमारे वश में नहीं होता।
(1) आप चाहकर किसी की चाहत कर सकते, प्यार कर सकते, मुहब्बत कर सकते लेकिन आप किसी से प्रेम या इश्क़ नहीं कर सकते।
(2) चाहत, प्यार, मुहब्बत जिससे धोखा मिले, उससे दुबारा नहीं की जा सकती क्योंकि आपने उस पर अपना विश्वास पहले ही खो रखा है।
(3) प्रेम धोखा खाने पर भी समाप्त नहीं होता, फिर दुबारा उसीसे करने का सवाल ही पैदा नहीं होता।
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