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कोई शिद्दत से चाहने वाला

 



Koi Siddat se Chahne wala


टूटती नहीं है अब घर की खिड़कियों के कांच।

ना तो अब वो शहर रहा, ना ही वो दिवाने रहे।


तू जो मेरा ना रहा तो, मैं भी कब किसी का रहा।

ठहरा कहां यह दिल मेरा, तेरे अंजुमन के बाद।


मालूम था जानेमन डूबना ही मुकद्दर है मेरा।

फिर भी समंदर की लहरों को मैं गिनता रहा।


मुझे जिसकी तलाश है वो जहांन मुझे नहीं मिलता।

जल गई बस्तियों में तेरा नामो-निशान नहीं मिलता।


तलाशते रहेंगे तमाम उम्र तुमको हर एक चेहरा में।

तुम सा कोई शिद्दत से चाहने वाला नहीं मिलता।


नई जमीन, नया आसमां, नये लोग मिला करते हैं।

ज़ख्मों पर तुझ सा मरहम लगानेवाला नहीं मिलता।


सबको अपने-अपने दुःख दर्द बयां करते देखा हैं।

तुम सा कोई अपना गम छुपा रोनेवाला नहीं मिलता।


बता सकता है तो तू अपनी धड़कनों से पूछकर बता।

क्या कभी कोई एक धड़कन वो मेरे नाम किया करता।


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