![]() |
Urdu Sanskriti aur Itihas hai |
बात उन दिनो की है जब शिक्षिका के रूप में विद्यालय में नई -नई गई थी । मैंने अपने अनुभव पहले भी आपसे शेयर कर रखी है।
मैं बता दूं आपको मैं इन्ट्रोवर्ट यानी बहुत कम नाप- तौल कर बोलने वाली थी।
वह तो बक-बक की आदत और लड़ाकू मुझे मेरे सीनियर शिक्षक- शिक्षिकाओं ने बना दिया।
विद्यालय में सीनियर जूनियर का चलन था। मैं इसका शख्त विरोधी थी । इसके कारण मुझे ढेर सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा था।
बाद में समझ में आया कि सीनियर जूनियर का चलन बहुत बढ़िया है, जब हमारे नीचे कुछ जूनियर टीचर ने ज्वाइन किया। अपने आप को सीनियर दिखाना और जूनियर पर अपना धौंस जमाना अच्छा लगता था।
एक शिक्षक जो उर्दू जानते थे, विद्यालय में आए। ढूंढ रही हूं🤔 कैसे उनके व्यक्तित्व को परिभाषित करूं। सौम्य, सुसंस्कृत विद्वान, हंसमुख, ( हिन्दी, इंग्लिश, उर्दू ) हर विषय पर पूर्ण अधिकार। हेडमिस्ट्रेस को भी नोटिस वगैरह लिखने में उनकी सहायता लेनी पड़ती थी।
दूसरी तरफ गजब की प्रत्युत्पन्नमति थी, उनकी तहज़ीब मास्सा अल्लाह 🙏 लेकिन थोड़े अड़ियल भी जैसे अपनी खासियत उनको पता था 😀 वाकपटुता में निपुण किसी की क्या मजाल उनसे जीत जाए।
हम तीन शिक्षिका को उर्दू सीखने की धून चढ़ गई। जब हमलोग अपनी इच्छा उनसे जाहिर किया, जानते हैं उस शख्स ने क्या कहा ?
उर्दू केवल सीखने और सिखाया जाने वाली भाषा नहीं, यह तहज़ीब है, नज़ाकत है, अहसास है इसकी मिठास दिलों को छू जाती है। इसकी लयबद्धता मन को मोह लेती है।
उर्दू भाषा शब्दों का संयोजन मात्र नहीं इसकी मिठास जिव्हा पर लाना सबके बस की बात नहीं।
वे कह रहे थे और हम तीनों चुपचाप सुन रहे थे क्या करते दोस्तों, गुरु जो बनाना था, शिक्षा ग्रहण करनी थी।
उर्दू के शेर और ग़ज़लें आत्मा की आवाज़ होती हैं। इसमें वह अपनापन है, जो इंसान को करीब लाता है उर्दू तमीज है, तहज़ीब है जो बातचीत को संवारती है, और वह जादू है जो भावनाओं को शब्दों में बांध देती है।
यह भाषा प्रेम, इश्क़, मोहब्बत और सदभाव की ज़बान है। इसकी हर लफ्ज़ में एक ख़ूबसूरती छुपी है, हर बयान में एक अदा।
उर्दू किसी की जबान से निकलती है और दिल तक पहुंच जाती है।
उर्दू न केवल साहित्य की समृद्ध भाषा है, बल्कि यह संस्कृति और इतिहास की गवाह भी है।
अब क्या था उनके जुमले उन पर ही डाल दिया - तभी तो सर हमें भी सीखने की चाहत हो रही है।
वे हमें सिखाने को तैयार हो गए अब आई समय की बारी !
हरेक घंटी में हमारे क्लास रहते थे, सबका एक साथ खाली समय होना नामुमकिन था।
यह सुझाव आया क्यों न हमलोग लंच टाईम में पढ़ें। फिर क्या था कल से नई कॉपी लेकर, लंच को जैसे तैसे ठूंस कर हम तीन छात्राएं पहुंच गए जेन्टस लीजर रुम में।
वैसे ऐसा कोई बंधन नहीं था फिर भी लेडिज रुम में पुरुष शिक्षक नहीं आते थे। यह लाजिमी भी है क्योंकि कभी-कभी किसी महिला शिक्षिका को 2-3 कुर्सी जोड़कर सोना पड़ता था। महिलाओं की कुछ समस्या ऐसी भी होती है जब वो आधी बीमार रहती है, ऐसे अधूरी बिमारी में छुट्टी लेना अच्छा नहीं लगता।
क्रमशः ....
0 Comments