तुम खुद ही समझ भी जाओ
(1)
शब्द जितने कठोर हो स्वर उतने मधुर बनाओ।
गांओ इस तरह जिंदगी के मधुर तुम गीत गाओ।
निमंत्रण के इंतजार में क्यों खड़े हो द्वार पर तुम।
आमंत्रण नयनों ने नयनों को भेजें है समझ जाओ।
किसी और के आदेश की जरूरत नहीं है तुम को।
दरवाजे सब खोल रखें है हम तुम अंदर तो आओ।
घटा काली अब घिरने लगी हैं बारिश के आसार है।
भींग जाओगे ऐसे मौसम में जल्दी तुम लौट आओ।
(2)
जिंदगी और मौत में छत्तीस का आंकड़ा रहा है।
हमेशा से एक के आते ही दूसरा भागता रहा है।
जिंदगी और मौसम की तासीर एक सी बनी है।
आकर मिल जाए दोनों गले भरोसा कब रहा है।
मैं तेरी थी हूं रहूंगी सदा, कहने की जरूरत नहीं।
समझा ना सकूंगी मैं तुम्हें खुद समझ भी जाओ।
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