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सुनो मेरे अनजाने शुभचिंतकों

Tum ussi baat me atki ho


 ज़ख्म छूने का इजाजत नहीं
 

दर्द देने वाले ही तेरे ज़ख्म भरने नहीं देते।


चंद शब्द उनके भी गहरे घाव दे जाते है।

जिन्हें जाने-अनजाने हम भाव दे आते हैं।


अरे तुम अब भी उसी बात में अटकी हो ?

अब भूल जाओ माफ़ कर दो आगे बढ़ो।


दर्द देने वाले ही तेरे ज़ख्म भूलने नहीं देते।


भरोसा टूटने का दर्द आत्मा दरका देती।

पहले जैसे रिश्ते की चाह ही मिटा देती।


सवाल यह नहीं क्यों ? नहीं भूली दर्द को।

सवाल? सवाल जो तरसते रहे जबाब को।


तेरी खामोशी में छुपा जबाब ढ़ूढना फजूल है।

अधूरी सफाईयो ने ही मार डाला मेरे गुरूर को।


उसने कहा तुम बहुत ज्यादा सोचती हो।

मन ने कहा सोचती नहीं महसूस करती हूं।


अरे तुम अब भी उसी बात में अटकी हो?

दर्द देने वाले ही तेरे ज़ख्म भरने नहीं देते।


दर्द देने वाले के सवाल ही उसे भूलने नहीं देते।


सुनो मेरे अनजाने शुभचिंतकों ऐ घाव मेरे है।

इसे भरने का हक भी मेरा है तुम्हारा नहीं है।


मैं हरेक ज़ख्म अपने भावनात्मक स्तर पर जीती हूं।

अपने ज़ख्म छूने का किसीको इजाजत नहीं देती हूं।

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