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ताउम्र का साथ है |
(1) A
सावन का सूनापन 🌧️
ठहर सा गया था वक़्त कहीं,
बन बैठी मैं खुद से भी अजनबी।
हर दीवार चुप सी कुछ न कहती थी,
आईना भी चुप सा था मौन खड़ा।
(1) B
हां, अकेलापन था, रहेगा भी शायद,
पर अब वो सज़ा नहीं, साथी है,
और इस बार जब ख़ुशी आई,
दरवाज़ा खटखटाए वगैर—बिन शोर के।
(2) A
“फिर एक किरन” ☀️ 🌧️
तुम्हारे बिना भी भीगते हैं,
पर अब बारिश सिर्फ़ रूलाती है।
भीगाती नहीं,
हर बूंद तेरी चुप्पी जैसी लगती है।
जो मेरे आंखों से होकर गुजर जाती है।
(2) B
भीगे पत्तों पर मेरे कुछ लफ्ज़ गिरे हैं।
नाम तुम्हारा नहीं, पर असर तुम्हारा है।
ठंडी हवाओं की हल्की सी कंपकंपी में
आज भी तेरे आख़िरी अल्फ़ाज़ का बसर है।
वो चाय की प्याली अब भी खौलती है,
पर उसमें वो ‘हंसी’ नहीं जो तुम डालते थे।
अब स्वाद है—पर मिठास नहीं,
सावन है—पर एहसास नहीं।
"भीगे में इंतज़ार"सावन उपहार सा आया है।
(3)- A
सावन का सूनापन 🌧️
सावन आया झूमते-गाते,
पर मेरा दिल विरान था।
सामने पड़ी कसमे वादे का राख है।
झूले की रस्सी का फंदा भी बेकार है।
भींगी मिट्टी की सुगंध प्रिय तुम सी लगती,
सुलगते तन पर बारिश बूंदें ठंडक पहुंचाती।
बूंदें भाप बन उड़ जाती है।
मन खोया-खोया रहता है।
महकी मिट्टी भी अब चुभती है।
मिट्टी की महक से घबराता हूं।
यह सावन मेरे लिए प्रिय जुदाई का अलाप है।
क्या करूं इस सावन का जो तू ना मेरे साथ है।
(3) B
“सावन का सूनापन” 🌧️
महकी मिट्टी अब चुभती है,
जब तेरी पायल की झंकार नहीं,
बादल बरसते हैं ज़ोर से,
पर मेरी ओठों पर बरसात नहीं।
तुम होते तो ये बादल
साज़ में बदल जाते,
अब सावन सिर्फ़ मौसम नहीं,
एक जुदाई का आलाप गाते हैं।
(4)A
अधूरे सन्नाटे में उम्मीद
तभी उसी सन्नाटे की गोद से,
एक दिन हल्की सी दस्तक हुई,
जैसे पुराने बंद किताबों में,
भूला हुआ ख़त मिल गया कहीं।
(4) B
अब खिड़कियां खुलती हैं रोज़,
धूप पूछती है मुझसे—कैसे हो?
हवा लेकर आती --- कुछ नर्म वादे,
जिन्हें दिल चाहता है, बीते दिन बड़े सुकून से।
(5) A
पर उसी ख़ामोशी की गोद से
एक दिन हल्की आहट आई,
जैसे जमीं पर गिरा एक बीज
जी उठा खुद ब खुद सांसें पाई।
हां, तन्हाई थी… रहेगी भी शायद,
पर अब वो बोझ नहीं, दस्तक है,
वो तन्हाईयां जिंदगी देकर गई है,
और----फिर से आई एक किरण 😍
हवा में उसकी भीनी - भीनी सी खुशबू है,
जो कहती हैं --- सब कुछ मिटा नहीं है।
देख खुशबू बन मैं जो तेरे साथ हूं ---
जिंदगी ने फिर मुस्कुरा कर कहा,
“चलो, अब साथ चलें हम दोबारा”।
हाथों में हाथ ना सही,
ताउम्र का यह साथ है।🌧️🙏
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