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तेरे शब्दों के तासीर में

 



ढेरों एहसास जगा डाले


तन्हाइयों की सियाही से लिखा 

मैंने वो खत जो तेरे नाम का।


तेरे चुड़ियों की खनक से,

खत का राख भी उड़ गया।


कानों में साज की आवाज से,

मेरी आत्मकथा ही पलट गई।


अब तुम मिल भी जाओ तो क्या?

मेरा इख़्तियार मुझ पर रहा नहीं।


क्या सच में किसी ने मेरा मौन सुना?

मौन हूं तो लगता है कब्र में पड़ा हूं।


मैंने पूछा क्या तुम पर मेरा इख़्तियार नहीं?


ख्वाब में जिन उंगली ने मेरे आंसू पोंछे।

नींद टूटी तो वो उंगली नजर आई नहीं।


"खुद को बहुत ही सताया है मैंने"

एक पल भी खुद के लिए जीया नहीं।


"रातों में जगकर रिश्तों की मरम्मत की है"

कोई समझ ना पाया रिश्तों की गहराई।

  

तुमने सपने में कहा था...

तू अब भी मेरी है ।


तेरे शब्दों के तासीर में,

ढेरों एहसास जगा डाले।


ख्वाब में भी नहीं कहा...

तू सिर्फ और सिर्फ मेरा है।


नींद टूटते तू चुप हो गया।

आसान नहीं नींद टूटन को बयां करना।



जिंदा रहना भी मजबूरी है।

जब रिश्ते मौन होकर क़ब्र में पड़े रहे।

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