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Isak me keyo itna udhar Liya maine

 




हर मौन दुआ में,

बस तेरा ही नाम लिया मैंने,  

ख़ुदा भी सोचता होगा, 

‘इश्क़ में क्यों इतना उधार लिया मैंने?’

 

तेरी बदनामी के धागे, 

कोशिश रहेगी किसी करघे से न बुने।

जिस दिन सफलता आये, 

तुम मेरा नाम लेने से भी मुकर जाए।


सदियों पुराना लेखा था, 

हर साँस में उधारी थी,  

जन्म-जन्म की वो गलियाँ, 

जहाँ सल्तनत हमारी थी।

  

सूद में ही जलते रहे थे, 

फिर भी मूल छूटा नहीं।

तेरे भरोसे की वो चिट्ठी,  

मेरी तिज़ोरी में बंद रही।


मैं लौटूँगा ज़रूर, खाली हाथ नहीं, यह मेरा वादा है,  

तेरे आँगन में उगाऊँगा वो पेड़, जो आसमान छूती है।


जिसके फल में उम्मीदें हों, छाया में चैन के अफ़साने।

जड़ में वो इश्क़ का जूनून, जो बिन देखे भी पहचाने।


जिंदगी तुमने तो बस जलना सिखाया है।

तुमको जितना जीया नहीं उतना लड़ा है।


जहन्नुम की राहों में हंसते हुए क़दम रखी है।

परवर दिगार 🙏कौन सी सजा मुकर्रर रखी है।


जहन्नुम की लहरों से मैंने जंग लड़ी है खामोश,  

डर नहीं मुझे दोज़ख से, पर इम्तहान है सख़्त।


दोज़ख से डरना मेरी फ़ितरत ही नहीं है, 

मेरे लिए जिंदगी दोजख से कम नहीं है।


हर दुआ में तेरा ही नाम रखा,मेरी इबादत भी तुझमें बसी,  

बदनामी मेरी हो मगर उसमें तेरा ज़िक्र रहे मुझे मंजूर नहीं।


जहां- जहां क़दम बढ़ाओ वहां सिर्फ़ रोशनी ही रोशनी रहे।

तू लाख कोशिश कर पहचान मिटाने की जमाना याद रखें

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