Maun ki Gawahi
अब ना कोई उम्मीद है किसी से।
ना किसी का इंतजार ऐ ज़िन्दगी।
तू तो ऐसे ही चलती जा।
बस मौत की आस लिए।
तेरे मौन की खामोशी से,
मेरे शब्द कम पड़़ गए।
ईश्वर से गवाही ले लो,
मैंने मांगा नहीं कुछ,
कभी अपने लिए।
खुद को बहुत ही सताया है मैंने।
सबको खुश रखने की चाह में।
जब-जब भी कोई नाराज़ दिखा।
तब- तब माफी मांग लिया मैंने।
खुदा गवाह है माफ़ी मिली नहीं।
मौन हूं तो लगता है क़ब्र में पड़ी हूं।
मांजी की राख भूलकर पलटना नहीं।
थोड़ी- थोड़ी मर चुकी पूरी मरी नहीं।
इतनी मरती रही जितनी जी भी नहीं।
क्यों जिएं, कैसे मरे हम बे- खबर नहीं।
इतने मसरूफ हम कभी भी रहे नहीं।
मसरूफ है सब जमाने में,
किसी को यहां,किसी की खबर नहीं।
पराए को छोड़ो अपनों ने ऐ कहा है---
सात जन्मों का बात करना फजूल है।
इस जन्म में भी साथ रहूंगा, मगर ताउम्र नहीं।
ख्वाब में अगर मिलोगे तो पूछ ही लेंगे तुमसे।
सच कहना क्या तुम पर मेरा इख़्तियार नहीं।
मेरी लेखनी ही मेरी आवाज़ है।
तेरा ही दिया हुआ यह हथियार है।
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