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रुह में बस गए हो फ़रिश्ते से दिखते हो

Jane kausa karz hai chukane aate ho

जाने क्या बात है...कलम उठाने से पहले,

नज़र में बस तेरी ही छवि उभरती है।


ऐसा भी नहीं की...मैं बस तुमको सोचता हूं।

ऐसा भी नहीं है कि...अब तुमको भूल गया हूं।


जाने क्या बात है...जब भी कलम उठाता हूं।

कलम उठाते सामने खड़ा तुमको ही पाता हूं।


सच तो यही है...सबसे पहले याद आते थे तुम।

अब सबसे बाद में याद करता हूं।


जाने क्या बात है...जब भी कलम उठाता हूं।

कागज़ बना सामने पड़ा तुमको ही पाता हूं।


सच तो है, अब ना मै...


तुमको दोस्तों में रखता हूं।

दुश्मन भी कहां समझता हूं।


जाने क्या बात है...जब भी स्याही बिखड़ती है।

ब्लोटिंग पेपर बना तुमको ही करीब पाता हूं।


जाने क्या बात है...कब, क्यों और कैसे ?


ऐसे मेरे रूह में बस गए हो ?

कभी फ़रिश्ते से दिखते हो।


कभी आईना दिखाते हो।

कभी तुम कोई देव लगते हो।


जब दिल घबराता है, बस याद तुम्हें ही करता हूं।
काल्पनिक तस्वीर हो मेरे तसल्ली देते मैं पाता हूं।

ना मैं तुमको कभी देखा हूं।

ना मिलने की उम्मीद करता हूं।

ना जाने किस जन्म की पहचान है अपना सा दिखते हो?


ना कोई चित्र है ना ही कोई रूप है तेरा।

हर चाहने वाले के दिल में तुम बसते हो।

ना जाने किस जन्म का था कर्ज तुम पर चुकाने आते हो ?


तुझे रखा नहीं है कागज़ पर मैंने।

फिर भी तुम हर अक्षर में दिखते हो।


जाने यह कैसी उपस्थिति है तेरी।

तुम अनुपस्थिति में भी दिखते हो।


हर कविता में मेरे हर मिसरे में दिखते हो।

सपने में आकर कागज़ क़लम पकड़ाते हो।

मेरी कविता की हर धड़कन में दिखते हो।


हर अल्फाज़ में तेरी मौन आवाज़ यूं गूंजती है,

तेरी खामोशी में मेरी पूरी कविता बोल उठती है।


मैं जब भी कोई कविता लिखता हूं ,

हर मिसरा हर अक्षर तेरे नाम करता हूं।


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