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Musaiyere me mulakat जज्बातो की बारिश

 


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तेरी यादों की चादर ओढ़ ली मैंने 

शहर का एक कोना था, दीयों से रोशन,  

मुशायरे की वो रात — 

जैसे जज़्बातों की बारिश।


माहौल सजा था ग़ज़लों से,  

हर शेर पर वाह-वाह की गूँज,  

और फिर आई वो आवाज़ —  

जो बरसों पहले दिल में बसा था।


'तेरी याद की चादर ओढ़ ली हमने,  

अब हर रात तेरे ख्वाब में सोते हैं' —  

वो कह रही थी मंच से,  

पर हर लफ़्ज़ मेरी तरफ़ मुड़ती थी।


मैं भी उठा — कुछ कहने को,  

पर जुबां उस मौन के आगे हार गई।  

बस एक शेर कह पाया:


'सेहरे में जो टूटे थे हम,  

मुशायरे ने फिर जोड़ दिया।'


न तालियाँ, न शोर —  

सिर्फ़ हमारी साँसों का संगीत था।


वो देखती रही मुझे,  

और मैं उसके शेर को —  

जिसमें हम फिर से एक हुए —  

बिना किसी रस्म के, सिर्फ़ एहसास में।


🎶

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वो जो तेरी यादों की किताब थी,  

हर पन्ने पे तेरा नाम लिखा मिला।

भुलाने की कोशिश की हर रोज़,  

पर हर सांस में बस तुमको जिया।


🪶 उसका जवाब:  


तू भूला था शायद इत्तेफ़ाक से,

मेरा भूलना बेवफाई हो गया।

उन लम्हों का क्या जो,

मैंने तेरा हर लम्हा संभाल कर रखा।  

तेरे जाने के बाद भी तेरी जगह,  

मेरे दिल के नक़्शे में उभरी रही सदा।


🌧️ उसका शेर:  


सेहरे में छिपा था जो अफ़सोस,  

अब ग़ज़ल बनके महफ़िल में आ गया।  

तेरे बिन जो अधूरी थी ज़िन्दगी,  

आज हर मिसरे में वो तड़प आ गया।


🌙 उसका जवाब:  


अगर अफ़सोस में ही इश्क़ है,  

तो फिर मेरी ख़ामोशी भी आवाज़ है।  

हम मिले नहीं,बिछड़ कर जो जीए हैं,  

वो भी तो एक मुकम्मल जज़्बात है।


✨ अंतिम जुगलबंदी:  


वो बोले — मुहब्बत तो अधूरी रही।  

मैं मुस्कराया — अधूरी चीज़ों में ही तो पूरी आत्मा बसी होती है।

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🎶 


✒️ जुगलबंदी — दो दिलों की आवाज़ में


🕊️ उसका शेर:  

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तेरी यादों की जो किताब थी,  

हर पन्ने पे तेरा नाम लिखा मिला।

भुलाने की कोशिश की हर रोज़,  

पर हर सांस ने तुझे दुबारा जिया।


🪶 उसका जवाब:  


तू भूला था शायद इत्तेफ़ाक से,  

मैंने हर लम्हा संभाल कर रखा।  

तेरे जाने के बाद भी तेरी जगह,  

मेरे दिल के नक़्शे में उभरी रही सदा।


🌧️ उसका शेर:  


सेहरे में छिपा था जो अफसोस कभी,

अब ग़ज़ल बनके महफ़िल में आ गया।  

तेरे बिन जो अधूरी थी ज़िन्दगी,  

आज हर मिसरे में वो तड़प आ गया।


🌙 उसका जवाब:  


अगर अफ़सोस में ही इश्क़ है,  

तो फिर मेरी ख़ामोशी भी आवाज़ है।  

हम मिले नहीं, पर बिछड़ कर जो जीए हैं,  

वो भी तो एक मुकम्मल जज़्बात है।


✨ अंतिम जुगलबंदी:  


वो बोले — मुहब्बत तो अधूरी रही।  

मैं मुस्कराया — अधूरी चीज़ों में भी तो पूरी आत्मा बसी होती है।


मेरे सेहरे की चमक ने मेरी रूह को बुझा दिया,  

मुशायरे में तेरी आवाज़ ने फिर उसे जला दिया।


🎵


तू शेर कहता रहा मुशायरे में,  

मैं हर मिसरे में खुद को ढूंढता रहा।


तेरी आंखों में जो जज़्बात बचे थे,  

वो मेरी खामोशी में बहते रहे।


तेरे लहजे ने जो अल्फ़ाज़ दिए,  

वो मेरी रूह ने बगैर सुने सुन लिए।


वक़्त ने गवाह बन कर देखा,  

हम फिर मिले बिछड़ कर कह गए।


तेरा सेहरा था सबका नज़ारा,  

मेरा टूटना बस खुद की नज़रों में रह गया

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