Lakh samjhàne par chand pane ki zidd
'' काश यह दिल बच्चा बन जाता ''
कभी तो यह दिल बच्चा बन जाता,
उम्र कहीं पीछे छूटती चली जाती।
सालों की समझ, पल में खो जाती,
एक मुस्कान में दुनिया सिमट जाती।
''काश यह दिल बच्चा बन जाता ''
सुनहरे ख्वाब फिर से दौड़ लगाते,
कंचे,पतंगें, गुड्डे-गुड़ियों फिर बुलाते।
कागज़ की नावें पानी में बहते रहते,
जज़्बात सभी बारिश में भींगने लगते।
''काश यह दिल बच्चा बन जाता ''
न कोई फ़िक्र, न कोई बहाना,
अजीब सा था बचपन का वो जमाना।
पल में रुठना और पल में मान जाना।
आंसू सूखने से पहले ही मुस्कराना।
''काश यह दिल बच्चा बन जाता ''
ढेरों सच्चे झूठे बहाने बनाकर,
पढ़ाई-लिखाई से फुर्सत पाकर।
वही कभी गुब्बारे,कभी झूले की चाह,
दिल फिर से करता है मासूम गुफ्तगू।
''काश यह दिल बच्चा बन जाता ''
उम्र कहती है — "ठहरो ज़रा,"
दिल कहता है — "चलो फिर से जी लेते हैं।"
बचपन का दोस्त मिलते ही फिर,
दिल बच्चा बन जाता है ---
कभी कभी, बस यूं ही बेवजह,
दिल बच्चा बन जाता है…
बचपन का दोस्त ही तो है वजह।
उम्र को ठहरों कह---
मन सब भूलकर बच्चा बन जाता है।
" काश यह दिल बच्चा बन जाता है"
कभी कभी दिल बच्चा बन जाता है,
उम्र कहीं पीछे छूट जाता है।
सपनों की गलियों में फिर से,
कोई पुराना गीत गूंज जाता है।
जब कोई अपना आ जाता है।
''काश यह दिल बच्चा बन जाता ''
कंचों की चमक, वो बारिश की बूंदें,
बुलाती हैं वो भूली - बिसरी सी धुनें।
कागज़ की नावें, बहती हैं यादों में,
बचपन की हंसी गूंजती है कानों में।
''काश यह दिल बच्चा बन जाता ''
झूले की रस्सी, वो पेड़ की छाया,
दिल ढूंढता है वही पुराना साया।
सालों की थकन, पल में मिट जाती,
एक मासूम चाह फिर से खिल जाती।
जाने-अनजाने घड़ी उलटी चल जाती।
''काश यह दिल बच्चा बन जाता ''
बच्चा मन चांद की ज़िद पर अड़ जाता।
चांद को पाना नामुमकिन है,
लाख समझाने पर भी समझ नहीं पाता।
काश बच्चे का ज़िद रंग लाता।
चांद थाली में पड़े पानी में ही उतर जाता।
''काश यह दिल बच्चा बन जाता ''
चांद को पाने के लिए पानी में हाथ डुबाता।
हाथ लगते ही फिर वो चांद गायब हो जाता।
अश्क भरे नयनों से उसे ढूंढने छत पर जाता।
आकाश में चांद देखता तो देखता ही रह जाता।
''काश यह दिल बच्चा बन जाता ''
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