मैं जानता हूँ-
मैसेज जो unseen रह जाते हैं,
वो हर बार थोड़ा और तोड़ जाते है।
पर क्या तुमने कभी सोचा —
जवाब न देना भी दिल में बंद,
सिसकती हुई सच्चाई होती है?
पहले मैं भी हर सुबह,
तुम्हारे गुड मॉर्निंग से जागता था।
अब नींद खुद व खुद खुल जाती है।
पर मन नहीं खुलता —
हर दिन एक बोझिल मीटिंग खुद से,
जिसमें मैं खुद से ही बहस करता हूँ।
"Busy " कहता हूं,
इसमें मेरी गलती नहीं है।
क्या तुम समझ पाते हो ?
मैं खुद से ही बिजी हूं —
अपने टूटते हिस्सों को
जोड़ने की कोशिश में?
तुम कहते हो,
रिश्ता वेंटिलेटर पर है,
मैं उसमें जान फूंकने को तैयार बैठा था।
कब से एक सांस के इंतजार, में बैठा था।
अभी भी ऑक्सीजन मास्क को थामे बैठा हूं —
मैं उसमें जान फूंकने को तैयार बैठा हूं।
बस सांसें नहीं चल रहीं बेकार बैठा हूं।
मैं बदल गया हूं,
हां — बस सांसे चल रही है।
मेरा यह बदलाव तुम्हें भूलने जैसा लग रहा है।
मैं खुद को पहचानने की कोशिश कर रहा हूं।
साल पूरा होते जब तुम goodbye कहोगे--
बस चंद दिन ही तो बचे हैं कॉलेन्डर बदलने में।
तो मेरे द्वारा किया परिश्रम मुझसे पूछेंगा —?
"ऐसा क्या हो गया मैं कोशिश कर तो रहा था?"
क्योंकि सच तो ये है —रिश्ते खुद नहीं मरते।
रिश्ते बचाने में, हम ही खुद से मरने लगते हैं।
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