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Kho Gaye keya Andar hi Andar |
✉️ एक ख़त जो भेजा नहीं गया
तुम्हें खत लिखना आसान नहीं था,
और भेजना उससे भी मुश्किल।
पर आज,
सब कुछ कह देने का मन है,
तो ये ख़त तुम्हारे नाम नहीं,
मेरे उस एहसास के नाम है
जो कभी तुम मेरे लिए थे।
तुम्हारे जाने के बाद
मैंने खुद को कई बार टटोला—
क्या बचा है मेरे अंदर ?
खो गया क्या अंदर ही अंदर?
तुम्हारे साथ जो बातें अधूरी रह गई है,
वो अब मेरे शब्दों में पूरी नहीं होती हैं।
पर तुम्हारे बिना।
तुमको खोकर ही मैंने सीखा है,
खोना भी एक तरह की प्राप्ति है।
तुम्हें खोकर
मेरा भ्रम मिटा मैंने खुद को पाया।
तुम्हारी यादें अब शिकायत नहीं करतीं,
बस चुपचाप बैठी रहती हैं
मेरे कमरे के एक कोने में,
जैसे कोई पुरानी किताब
जिसे बार-बार पढ़ा गया हो
पर कभी समझा न गया हो।
इस ख़त को भेजना नहीं चाहता हूं ,
अब खत को जवाब की ज़रूरत नहीं।
बस इतना चाहता हूं---
अगर कभी तुम्हें ऐसा लगे
कि कोई तुम्हें समझता था,
तो जान लेना—मैं ही था।
वो, जो कभी तुम्हारा था।
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