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तर्क नहीं बस समर्पण

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💫
जब प्यार दूर से आवाज़ दे 


जब प्यार दूर से आवाज़ दे,

तब कोई तर्क नहीं,बस समर्पण दे।

परिणाम बिना सोचे 🤔

  

प्यार बंधन नहीं, मुक्ति का द्वार है,  

पूर्व कर्मों से करता उद्धार है।


भावों को शब्दों में ढालना सिखाए,  

बंधन तोड़, आत्मा को छू जाए।  

खुद से खुद की पहचान कराए,  

मन की भाषा हमें पढ़ना सिखाए।


परिणाम सोचे वगैर जीवन में आने दे।

प्यार बांधने नहीं बंधन खोलने आता है।


पूर्व कार्मिक क़र्ज़ से मुक्त कराने आता है।

भाव को शब्दों में पिरोना सीखा जाता है।


दुनिया के सारे बंधन से मुक्त करवा जाता है।

खुद से खुद की पहचान करवा जाता है।


अपने ही मन को पढ़ना सिखाने आता है।


(2)


बदलाव प्रकृति का नियम कहाए,  

जो न बदले, वो सड़ जाए।  

बदला तेरा वो भी जो कभी अपना था,  

वह जो कभी तेरे जीवन का हिस्सा था।


शिकवा न कोई, न कोई गिला,  

पूर्व जन्म की मान्यता से मिला।

किस्मत में बस इतना ही साथ था,

कार्मिक कर्म को पूरा कर वो चला।


(3)


🥀 महफ़िल की तन्हाई



मिटाने के लिए लिखना अच्छा नहीं लगता।

खाली हाथ महफ़िल में जाना अच्छा नहीं लगता।


जाने को हम चले जाते हैं बिना बुलाए महफ़िल में।

हाथ पकड़ अपनो से निकाला जाना अच्छा नहीं लगता।


पंखुरी झरने के बाद फूल गुलदस्ते में अच्छा नहीं लगता।

कब्र को हिला कर मूर्दे को जगाना अच्छा नहीं लगता।



💔 अधूरी चाहत


मैंने तुमको पाने के लिए नहीं चाहा था,  

तुम तो यूं ही डर गए खुद को खोने से।



तन्हाइयों में मैं ख़त लिखता-मिटाता ही रह गया।

उस तक पहुंचने से पहले कहानी ही पलट गई।


🔮 रूह की इजाज़त


जिस्म बिना इजाज़त पाया जा सकता,  

रूह को छूने में दिल की इजाज़त लगती।


कविता को सज़ा दिया,भावों की रौशनी में,  

जहाँ हर शब्द मेरे आत्मा से बात करते हैं।

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