तुम हक की बात करते हो
कहो क्यों चलूँ मैं तेरी राहों पर,
जब ऐ सांसे मेरी खुद की हैं,
क्यों ओढ़ूं उस रंग की चादर,जो तू चाहे,
क्यों रंगू तेरे पहचान के रंग में?
तेरी पसंद का बोझ क्यों ढोऊं,
जब दिल मेरा कुछ और कहे,
क्यों पीऊं वो ज़हर सिगरेट-दारू,
जब मेरी रुह भी इससे डरे।
मैंने जब कहा, सुना नहीं गया,
मेरी ना को हाँ में बदला गया,
क्या प्यार में मेरी मर्ज़ी नहीं?
क्या इज़्ज़त सिर्फ तेरी ही बनी?
हक वो नहीं जो छीन लिया जाए,
वह भी नहीं जो भीख में मांगा जाए।
हक वो है जो दिल से दिया जाए,
जो तू दे नहीं सकता मुझे, तो कहो,
उसे लेने का भी हक तू कहां से पाए?
ज़िंदगी मेरी है, मेरी पसंद भी,
तेरे इशारों पर नहीं चलेगी,
मैं हूं, मैं रहूंगी, अपनी तरह,
मेरी जिंदगी है मेरी ही रहेगी।
तेरे सांचे में कभी नहीं ढलेगी।
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इज़्ज़त का सौदा
मुझे भी तो तेरी कई बातें चुभती हैं,
तेरी आदतें, तेरे शौक, तेरी बेपरवाहियां,
क्या कभी सोचा है तूने,
कि जो मुझे ज़हर लगे,
उसे तू अपनी ज़िंदगी से निकाल सके?
सिगरेट की धुआं, दारू की बोतल,
गुटखे की गंध, और वो निगाहें —
जो औरत को इंसान नहीं,
बस तमाशा समझती हैं।
क्या छोड़ सकता है तू ये सब?
मेरी रातों की शांति के लिए,
मेरे बेचैन दिल के सुकून के लिए?
तू अपनी आदतें बदल सकता है?
अगर हां — तो मैं भी बदलूंगी,
अपने पसंदीदा रंग को छोड़ दूंगी।
तेरी पसंद के कपड़े पहन लूंगी,
तेरे सुर में सुर मिला दूंगी।
सौदागर हो सौदागर सी सोच रखो।
जितना दो बस उतना पाने का हक रखों।
पहले मुझे तेरा वचन चाहिए,
वरना —
तेरी राह अलग, मेरी राह अलग।
रिश्ते झूठ से नहीं चलते,
मुहब्बत में रुह की सच्चाई है।
इज़्ज़त दी नहीं जाती तो
वो मांगी भी नहीं जाती।
जो अपने दिल के बैंक में
प्यार सम्मान जमा नहीं करता,
वो प्यार का चेक कैसे भरेगा?
पहले सीखो देना —
फिर बात करना लेने की।
कलम काग़ज़ खरीदी नहीं है,
उपहार में मिली है सो प्यारी है।
मेरी कलम नहीं बिकेगी,
सच कहती हैं सच कहेगी।
सुनना चाहो देखना चाहो तो देखो।
वरना अपने आंख कान बंद कर लो।
मेरी कलम बिकने के इंतजार में ना रहो।
अपने लिए कोई और दुकान ढ़ूढ लो।
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