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Aatma ko tark nahi samarpan chahiye

 


Sanato se baate karta raha

"अनजानी राहों में"

 

(भाव: आत्म-खोज, ईश्वर की तलाश, समय की नश्वरता)


अनजानी राहों में चलता रहा,  

सन्नाटों से बातें मैं करता रहा।  

हर मोड़ पे एक सवाल मिला,  

क्या मैं खुद से ही डरता रहा?


भाव: आत्मचिंतन और भ्रम


वक्त की रेत मुट्ठी से फिसलती रही,


जिंदगी अब सवाल मुझसे करती लगी।

सपने भी अब धुंधली सी दिखने लगे।  

एक दीप जला रखा था भीतर कहीं,  

तेज आंधी से अब वो भी बुझने लगी।


भाव: समय की नश्वरता और आंतरिक संघर्ष


तेरी यादों का जब भी संगीत बजा

हर सुर में था एक प्रार्थना छिपा।  

दूर होकर भी मैं तो तेरे ही पास था,  

तेरे मौन में भी कायम मेरा विश्वास था।


जब-जब तेरी बांसुरी बजी,

दिल ने कहा तू कहीं पास है खड़ी।

मन है कि हारता ही नहीं,

मेरी कोई बात वो मानता ही नहीं।


धूप दीप लेकर खड़ी रहूं उम्र भर,

मिलोगे कभी यह विश्वास दिला दो।

राधा रुक्मिणी मीरा सा नहीं।

गोपी समझकर ही तुम मुझे प्यार दो।





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