Karz ka kissa khatam nahi huwa
जन्म- जन्मांतर का किस्सा कहीं भ्रम तो नहीं?
जन्म-जन्मांतर के कर्मों का बोझ है,
सूद चुकाते-चुकाते जीवन रीत गया।
फिर भी मूल चुकाना अभी बाकी है।
कर्ज इतने जन्मों का था,
हिसाब बड़ा जटिल रहा,
सूद में उलझी रही साँसें।
जीवन का सिलसिला यूं ही चलता रहा।
मूल अभी भी ठहरा है, वक़्त का मारा हुआ।
पर वादा है कर्ज दाता, फिर लौटूँगा मैं सधा।
तेरे आँगन में लगाऊँगा अमीरी का इक पेड़।
कर्ज़ का किस्सा अभी ख़त्म नहीं हुआ ।
बस फिर रूप बदलकर मुझे आना होगा।
मुझे जरुरत ही नहीं पड़ेगी तुम तक जाने की।
कर्जदाता हो प्रकृति का जिम्मा है मिलाने की।
तू लाख कोशिश कर अपनी पहचान मिटाने की,
वगैर कर्ज चुकाए मैं नहीं यहां से वापस जाने की।
मैं कर्जदार हूं तेरा अगले जन्म में भी,
प्रकृति ना सही मैं तुम्हें ढूढ निकालूंगा।
बेगैरत कहते हो कह लो...पर
मैं शामिल ही कहां था तेरी बर्बादी में।
नदी की मजाल कहां है समंदर से टकराने की,
प्रण लिया है मीठा जल लाकर तुम्हें सौंपने की।
नदी तुमसे मिलकर अपना वजूद मिटा लेती है।
अरे वो अपना मीठा जल भी खारा बना लेती है।
जिसने अपने आप को भी नहीं संभाला।
कहो कैसे हो सकता है उसका ?
कोई हिस्सा है तेरी बर्बादी में।
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