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| Sach Kahne se darta hu |
सुबह से शाम तक समझौते पर
जीते- जीते हुए मै थक जाता हूं।
अपना दर्द नहीं बता पाता हूं तो,
तस्वीरों में बस मुस्कुरा देता हूं।
लोग दुश्मनी को भी दोस्ती कहते हैं,
अदब से सर झुकाकर सलाम करते हैं।
एक मैं हूं सच को सच कहने से भी डरता हूं।
उनके हरेक झूठ को भी स्वीकार करता हूं।
वो शहर, वो गली सब पीछे छोड़ आया हूं,
हर रात यादों में उस ओर निकल जाता हूं।
गले लगाकर पीठ थपथपाने वाला शख्स,
कब पीठ पर खंजर के वार कर दे डरता हूं।
लगा ना था यह ज़ख्म इतना भी गहरा होगा।
सीने से क्या ? हाथ मिलाने से भी कतराना होगा।

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